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Published: Mar 08, 2021 02:45 PM ISTSupreme CourtCJI एसए बोबडे बोले- रेप पीड़िता से आरोपी को शादी के लिए नहीं कहा, महिलाओं का सम्मान करता है कोर्ट, गलत रिपोर्टिंग की गई
नई दिल्ली. प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे (Chief Justice SA Bobde) की अगुवाई में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) की एक पीठ ने 14 वर्षीय गर्भवती बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की मंजूरी देने संबंधी याचिका की सुनवाई करते हुए सोमवार को टिप्पणी की कि न्यायालय महिलाओं का सर्वाधिक सम्मान (Womens Honor) करता है। पीठ ने कहा कि न्यायपालिका की गरिमा उसके वकीलों एवं ‘बार’ के हाथों में है। पीठ ने 14 वर्षीय गर्भवती बलात्कार पीड़िता (Rape victim) की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें याचिकाकर्ता ने करीब 26 सप्ताह के गर्भ समापन की अनुमति मांगी है।
प्रधान न्यायाधीश के साथ न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं। ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ (International Women’s Day) पर पीठ का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब न्यायालय की उस हालिया टिप्पणी को लेकर उसकी आलोचना हुई, जिसमें उसने एक अन्य मामले में बलात्कार के आरोपी से पूछा था कि क्या वह पीड़िता से विवाह करना चाहता है। इस घटना की पीड़िता से जब बलात्कार हुआ था, उस समय वह नाबालिग थी। माकपा पोलितब्यूरो की सदस्य वृंदा करात ने प्रधान न्यायाधीश को इस संबंध में पत्र लिखकर उनसे अपनी यह टिप्पणी वापस लेने को कहा था।
न्यायालय ने आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका पर एक मार्च को सुनवाई करते हुए कथित रूप से यह टिप्पणी की थी। कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, नागरिकों, बुद्धिजीवियों, लेखकों और कलाकारों ने भी प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर मांग की थी कि वह माफी मांगे और इन टिप्पणियों को वापस लें। पहले यह कहा था कि आरोपी से पीड़िता के साथ विवाह करने के बारे में पूछने संबंधी शीर्ष अदालत की टिप्पणी ‘न्यायिक रिकॉर्ड’ पर आधारित थी, जिनमें व्यक्ति ने अपने हलफनामे में कहा था कि वह अपनी रिश्तेदार और नाबालिग पीड़िता के 18 वर्ष का हो जाने के बाद उससे विवाह करेगा।
पीठ ने इस मामले का जिक्र करते हुए सोमवार को कहा, ‘‘हमें याद नहीं कि वैवाहिक बलात्कार का कोई मामला हमारे सामने आया हो… हम महिलाओं का सर्वाधिक सम्मान करते हैं।” शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमारी प्रतिष्ठा हमेशा बार के हाथों में होती है।” मामले में दलीलें देने पेश हुए वकीलों ने भी इस बात का समर्थन किया। सोमवार के लिए सूचीबद्ध मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील वी के बीजू ने कहा कि लोगों का एक वर्ग संस्थान की गरिमा को ठेस पहुंचा रहा है और इससे निपटने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है। भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) ने न्यायालय का समर्थन करते हुए कहा कि कार्यकर्ता सर्वोच्च न्यायपालिका को “बदनाम” न करें और उसकी कार्यवाहियों का इस्तेमाल “राजनीतिक फायदे” के लिये न करें।
पीठ ने एक मार्च को आरोपी की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की थी। महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड में कार्यरत आरोपी ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज करने के बंबई उच्च न्यायालय के पांच फरवरी के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। इस मामले की सुनवाई कर रही पीठ में न्यायमूर्ति बोबडे, न्यायमूर्ति बोपन्ना और न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यन भी शामिल थे। पीठ ने आरोपी से पूछा था, ‘‘क्या तुम उससे (पीड़िता) से विवाह करने के इच्छुक हो।
अगर उसके साथ तुम्हारी विवाह करने की इच्छा है तो हम इस पर विचार कर सकते हैं, नहीं तो तुम्हें जेल जाना होगा।” पीठ ने आरोपी से यह भी कहा, ‘‘हम तुम पर विवाह करने का दबाब नहीं बना रहे हैं ।” इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुये अधिवक्ता ने कहा कि आरोपी पीड़िता के साथ शुरूआत में विवाह करने का इच्छुक था लेकिन लड़की ने इनकार कर दिया था और अब उसकी शादी किसी और से हो गयी है। (एजेंसी)