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Published: Jun 05, 2021 11:41 AM ISTCorona Politicsमोदी सरकार के ‘भ्रम' के चलते ही 'कोरोना संकट' पैदा हुआ, खुद में ही रहे मस्त : अमर्त्य सेन
मुंबई. नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन (Amartya Sen) ने कहा कि भारत सरकार ने ‘भ्रम में रहते हुए’ कोरोना (Corona) को फैलने से रोकने के लिए काम करने के बजाय अपने कामों का श्रेय लेने पर ध्यान केंद्रित किया जिससे ‘स्किजोफ्रेनिया’ की स्थिति बन गई और काफी दिक्कतें पैदा हुई। स्किजोफ्रेनिया एक गंभीर मनोरोग है जिसमें रोगी वास्तविक और काल्पनिक संसार में भेद नहीं कर पाता। प्रख्यात अर्थशास्त्री ने शुक्रवार देर शाम को राष्ट्र सेवा दल द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि भारत अपने दवा निर्माण के कौशल और साथ ही उच्च रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण महामारी से लड़ने के लिए बेहतर स्थिति में था।
सेन की ये टिप्पणियां कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर की पृष्ठभूमि में आयी हैं। कुछ प्रतिष्ठित लोगों का कहना है कि पहले ही ‘‘विजयी” होने की भावना से यह संकट पैदा हुआ। सेन ने कहा कि सरकार में भ्रम के कारण संकट से खराब तरीके के निपटने की वजह से भारत अपनी क्षमताओं के साथ काम नहीं कर सका। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार ने जो किया उसका श्रेय लेने की इच्छुक दिखाई दी जबकि उसे यह सुनिश्चित करना था कि भारत में यह महामारी न फैले। इसका नतीजा काफी हद तक स्किजोफ्रेनिया जैसा था।”
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर सेन ने 1769 में एडम स्मिथ के लिखे एक लेख के हवाले से कहा कि अगर कोई अच्छा काम करता है तो उसे उसका श्रेय मिलता है और श्रेय कई बार एक संकेत होता है कि कोई व्यक्ति कितना अच्छा काम कर रहा है। सेन ने कहा, ‘‘लेकिन श्रेय पाने की कोशिश करना और श्रेय पाने वाला अच्छा काम न करना बौद्धिक नादानी का एक स्तर दिखाता है जिससे बचना चाहिए। भारत ने यही करने की कोशिश की।”
उन्होंने कहा कि भारत पहले से ही सामाजिक असमानताओं, धीमे विकास और बेरोजगारी से जूझ रहा है जो इस महामारी के दौरान बढ़ गया है। उन्होंने कहा, ‘‘अर्थव्यवस्था की विफलता और सामाजिक एकजुटता की विफलता, महामारी से निपटने में नाकामी की भी वजह है।” उन्होंने कहा कि शिक्षा संबंधी सीमाओं के चलते शुरुआती स्तर पर लक्षणों और इलाज के प्रोटोकॉल पता लगाने में मुश्किलें हुईं। सेन ने स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के क्षेत्र के साथ ही अर्थव्यवस्था और सामाजिक नीतियों में भी ‘‘बड़े सार्थक बदलाव” की पैरवी की।