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Published: Dec 06, 2021 06:00 AM IST

Mahaparinirvan Diwas 2021डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस आज, जानें इसके बारे में सबकुछ

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर (डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर) की 65वीं आज पुण्यतिथि है। उनका महापरिनिर्वाण (निधन) 6 दिसंबर 1956 को हुआ था। वे भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। उन्‍होंने अपना पूरा जीवन जातिवाद को खत्म करने और गरीबों, दलितों, पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए अर्पित किया। इसलिए आज के दिन उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर एक बौद्ध गुरु थे, इसलिए उनकी पुण्यतिथि के लिए बौद्ध अवधारणा में ‘महापरिनिर्वाण’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर पूरे भारत के लाखों लोग 1 दिसंबर से मुंबई में चैत्यभूमि उनकी समाधि पर आते हैं। यहां 25 लाख से अधिक भीम अनुयायी इकट्ठा होते हैं और चैत्यभूमि स्तूप में रखे आंबेडकर के अस्थि कलश और प्रतिमा को श्रद्धांजलि देते हैं। इस दिन भारत और दुनिया भर से आंबेडकरवादी उनकी प्रतिमा के सामने श्रद्धांजलि देते हैं।

डॉ. आंबेडकर ने दलितों की स्थिति में सुधार लाने और उनके हक्क के लिए बहुत संघर्ष किया। छुआछूत को खत्म करने में उनकी बड़ी भूमिका थी। इसलिए उनको बौद्ध गुरु माना जाता है। उनके अनुयायियों का मानना है कि, उनके गुरु भगवान बुद्ध की तरह ही काफी प्रभावी और सदाचारी थे। उनका मानना है कि, डॉ. आंबेडकर अपने कार्यों की वजह से निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं। यही वजह है कि उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस या महापरिनिर्वाण दिन के तौर पर मनाया जाता है।

बौद्ध धर्म के अनुसार, जो निर्वाण प्राप्त करता है वह सांसारिक इच्छाओं और जीवन की पीड़ा से मुक्त होगा। साथ ही वह जीवन चक्र से मुक्त होगा यानी वह बार-बार जन्म नहीं लेगा। परिनिर्वाण बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांतों और लक्ष्यों में से एक है। इसका वस्तुत: मतलब ‘मौत के बाद निर्वाण’ है। 

कहा जाता है कि, निर्वाण हासिल करना बहुत मुश्किल है। इसके लिए सदाचारी और धर्मसम्मत जीवन जीना होता है। 80 साल की आयु में भगवान बुद्ध के निधन को असल ‘महापरिनिर्वाण’ कहा गया। 

ज्ञात हो कि डॉ. आंबेडकर ने कई साल बौद्ध धर्म का अध्ययन किया था। इसके बाद उन्होंने 14 अक्टूबर, 1956 को बौद्ध धर्म अपनाया था। उस समय उनके साथ करीब 5 लाख समर्थक बौद्ध धर्म में शामिल हो गए थे।

वहीं 6 दिसंबर, 1956 को उनके निधन के बाद उनके पार्थिव अवशेष का अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के नियमों के मुताबिक मुंबई की दादर चौपाटी पर किया गया। जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया, उस जगह को चैत्यभूमि के के नाम से जाना जाता है। महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के अनुयायी चैत्यभूमि जाते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।