देश

Published: Mar 15, 2024 10:54 AM IST

Electoral Bonds Dataजानिए कौन हैं हजारों करोड़ का चंदा देने वाली टॉप कंपनियां, यह हैं वे बड़े सियासी दल, जिन्हे मिला अकूत 'धन का बल'

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

नई दिल्ली: जहां एक तरफ बीते गुरूवार को निर्वाचन आयोग (Election Commission)  ने चुनावी बॉण्ड (Electoral Bonds) के आंकड़े सार्वजनिक कर दिये। वहीं सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, निर्वाचन आयोग ने अपनी वेबसाइट पर बीते गुरूवार 14 मार्च को ही आंकड़े अपलोड कर दिए। हालांकि शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयोग को उसकी वेबसाइट पर आंकड़े अपलोड करने के लिए 15 मार्च शाम पांच बजे तक का समय दिया था। SBI ने यह आंकड़े बीते 12 मार्च को आयोग के साथ साझा किये थे। 

वहीं चुनाव आयोग और SBI द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड के डेटा के मुताबिक BJP सबसे ज्यादा चंदा लेने वाली पार्टी है। जी हां, निर्वाचन आयोग की वेबसाइटकी मानें तो बीते 12 अप्रैल 2019 से 11 जनवरी 2024 तक पार्टी को सबसे ज्यादा 6,060 करोड़ रुपए मिले हैं। वहीं, इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर तृणमूल कांग्रेस (1,609 करोड़) और तीसरे पर कांग्रेस पार्टी (1,421 करोड़) है। 

गौरतलब है कि, चुनाव आयोग ने वेबसाइट पर 763 पेजों की दो लिस्ट अपलोड की गई हैं। एक लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है। दूसरी में राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड की डिटेल ही है। आइये आपको बताते है कि, कौनसी कॉर्पोरेट पार्टियां है जिन्होंने सबसे ज्यादा चंदा दिया है।

इलेक्टोरल बॉन्ड देने वालीं टॉप कंपनियां

चंदा लेने वाली टॉप 10 राजनीतिक पार्टियां

क्या हैं इलेक्टोरल बॉन्ड 

इलेक्टोरल बॉन्ड दरअसल चुनावी चंदा हासिल करने के बॉन्ड हैं। ये बॉन्ड एक तरह के बैंक नोट हैं। वैसे ही नोट जैसे हम आप 100-500 रुपए के नोट देखते हैं। मोदी सरकार ने बीते 2018 में चुनावी चंदे के लिए बॉन्ड जारी किए थे। इन बॉन्ड का मकसद राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाना था। इन्हें साल 2017 के बजट भाषण के दौरान वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बड़ा चुनावी सुधार बताया था। 

नियम के अनुसार जो लोग किसी राजनीतिक पार्टी को 2000 रुपए से ज्यादा का चंदा देना चाहते हैं। उनको भारतीय स्टेट बैंक की किसी भी ब्रांच से ये बॉन्ड खरीदने होते हथे। चंदा देने वाले लोग इन बॉन्ड को खरीदकर अपनी पसंदीदा पार्टी को दे सकते थे। वहीं इन बॉन्ड्स को पाने वाली राजनीतिक पार्टी या दल अपने अकाउंट में लगाकर अपने पक्ष में भुगतान करा सकते थे। यह ठीक वैसे ही था, जैसे आप किसी को अकाउंट पेयी चेक देते हैं। इसी साल 15 फ़रवरी को सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ को असंवैधानिक करार दिया था।