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Published: Nov 13, 2019 11:17 AM IST

देशराजनीति: क्या नरेंद्र मोदी कश्मीर,अयोध्या के बाद अब समान नागरिक संहिता पर केंद्रित होंगे?

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

नई दिल्ली, बीजेपी अपने दूसरे कार्यकाल में फिर से बाजी मार मार रही है। अगर गौर किया जाए तो नरेंद्र मोदी के दूसरे फ़ेरे में दो महत्वपूर्ण तारीखें हैं जिसमे भारत की राजनीती को बदल कर रख दिया है. यह हैं पाँच अगस्त को भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बाँटने का फ़ैसला और साथ ही जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रमुख प्रावधानों को भी निष्प्रभावी करना. दूसरा 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट का बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद पर अपना फ़ैसला सुनाना।

विदित हो की बीते 5 अगस्त को गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प सदन में पेश किया. उन्होंने कहा कि कश्मीर में लागू धारा 370 में सिर्फ खंड-1 रहेगा, बाकी प्रावधानों को हटा दिया जाएगा. जिसके फलस्वरूप 31 अक्टूबर को हमें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख नामक दो केंद्र शासित प्रदेश बने. दूसरा सुप्रीम कोर्ट ने बाईट 9 नवंबर प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का पटाक्षेप कर दिया। अपने फैसले में उन्होंने निर्देश दिया कि राम मंदिर विवादित भूमि पर बनायीं जाए और मस्जिद निर्माण के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड दिया जाए.

क्या है यूनिफार्म कोड बिल 
समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक धर्मनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है।दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही ‘समान नागरिक संहिता’ का मूल भावना है। समान नागरिक कानून से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी धर्म या क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है. यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं।समान नागरिकता कानून भारत के संबंध में है, जहाँ भारत का संविधान राज्य के नीति निर्देशक तत्व में सभी नागरिकों को समान नागरिकता कानून सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करता है। गोवा एक मात्र ऐसा राज्य है जहां यह लागू है.
 
विदित हो कि कुछ दिनों पहले संघ के राम माधव ने बयान दिया था कि मोदी सरकार समान नागरिक संहिता लाने के लिए प्रतिबद्ध है. इतना ही नहीं मौजूदा लोकसभा के पहले सत्र में ही बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे देश में यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड लागू करने की मांग उठा चुके हैं. लेकिन सूत्रों के अनुसार इस बिल को बनाने में सबसे बड़ी दिक्कत यह आएगी कि शादी और संपत्ति जैसे मामलों में अलग-अलग धर्मों अपने-अपने नियम क़ानून हैं. उन सभी नियमों को एक करने में कई समुदायों को नुकसान हो सकता है कुछ को फ़ायदा भी हो सकता है. ऐसे में सभी को बराबरी पर लाने के लिए समायोजन करना बहुत मुश्किल होगा. मौजूदा वक़्त में भारतीय संविधान के तहत क़ानून को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा गया है. दीवानी (सिविल) और फ़ौजदारी (क्रिमिनल). वहीं अन्य राजनीतिज्ञों का मानना है कि समान नागरिक संहिता लागू करना जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 ख़त्म करने से भी ज़्यादा मुश्किल चुनौती होगी.
 
देखा जाए तो मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में तीन तलाक़ पर भी क़ानून बना चुकी है. वह एनआईए, आरटीआई, यूएपीए जैसे बिल भी पहले संसदीय सत्र में पास करवा चुकी है.साथ ही वह अपने एजेंडे में शामिल प्रमुख मुद्दों को तेज़ी से ख़त्म करती हुई दिख रही है. वहीँ ये भी प्रासंगिक होगा कि क्या वह समान नागरिक संहिता को अभी पूरा करना चाहेगी या फिर अगले लोकसभा चुनावों में अपने वोट बैंक को लुभाने के लिए एक मुद्दे को बनाए रखेगी. वैसे भी फ़िलहाल सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था की ख़राब हालत को सुधारना और बेरोज़गारी के आंकड़ों को दुरुस्त करना है क्यूँकि यही दो बड़े मुद्दे सरकार की साख पर हावी हो रहे हैं.