लाइफ़स्टाइल
Published: Jun 20, 2020 10:11 PM ISTलाइफ़स्टाइलपितृत्व के लिए स्वयं को तैयार करना चुनौती भरा काम
कोविड की स्थिति में यह चुनौती और भी अधिक
यूं तो पिता बनना और पितृत्व के लिए स्वयं को तैयार करना चुनौती भरा काम लग सकता है, लेकिन जब बात उन लोगों की हो जिनके बच्चे समय पूर्व ही पैदा हो गये हों, उनके लिए तो विशेषकर मौजूदा कोविड की स्थिति में यह चुनौती और अधिक बढ़ जाती हैं, उन पर अतिरिक्त दबाव व जिम्मेदारियां आ पड़ती हैं.
जॉन्सन एंड जॉन्सन के ग्रुप एसएफई व एनालिटिक्स मैनेजर, असीम शाह इस लॉकडाउन के दौरान पैदा हुए जुड़वे बेटों का पिता बनने के अपने अनुभवों के बारे में बताते हैं कि दो महीने पहले, मैं अपने सहकर्मियों के साथ एक महत्वपूर्ण वीडियो कॉल पर था, तभी मेरी पत्नी ने अचानक बताया कि उन्हें डिलिवरी के लिए हॉस्पिटल जाना पड़ेगा.
यह इमर्जेंसी डिलिवरी थी और हमारे बच्चे समय से चार हफ्ते पहले ही पैदा हो गये. यह भी कमाल की बात थी. मैं दोपहर 3.30 बजे ऑफिस कॉल पर था और लगभग 4.00 बजे अपनी बांहों में दो-दो बच्चे थामे हुआ था. समय से पहले पैदा हो जाने के चलते, बच्चों को एनआईसीयू में रखा गया. उनका लगातार ध्यान रखा जाना और उनकी देखभाल बेहद जरूरी था. मैं चाहता था कि मैं वहीं ठहरकर एनआईसीयू की कांच की दीवाल के पीछे से उन्हें लगातार टकटकी लगाये देखता रहूं, लेकिन मुझे वापस घर लौटना पड़ा, क्योंकि कोविड के चलते अस्पताल ने किसी को भी वहां ठहरने की इजाजत नहीं दी. यह स्थिति सामान्य से बिल्कुल अलग था और मुझे उन्हें उनकी हाल पर छोड़कर वहां से जाना पड़ा. मुझे दिन में केवल एक बार उन्हें देखने की अनुमति थी. यह भावनात्मक रूप से तकलीफ़देह अनुभव था.
लॉकडाउन में जन्में जुड़वे बच्चों के पिता ने शेयर किए अपने अनुभव
असली दिक्कत तो तब शुरू हुई जब उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया और वो हफ्ते भर में घर आ गये. जैसा कि मैंने बताया कि बच्चे समय से पूर्व हुए थे और बहुत छोटे थे. उनके लिए काफी छोटे-छोटे डायपर्स की जरूरत होती थी. जरूरी डायपर्स, फॉर्म्यूला मिल्क, दवाएं आदि लेने के लिए मुझे 8-10 फार्मेसीज का चक्कर लगाना पड़ता था. लॉकडाउन के चलते, ये चीजें आसानी से उपलब्ध नहीं थीं और मैं इन अत्यावश्यक चीजों को सीमित स्टॉक में ही रख पाता था, जो बमुश्किल 3-4 दिन चल पाता. यह हताशाजनक स्थिति थी. मुझे केवल अपने बच्चों के लिए उनके जरूरी सामानों को जुटाने की ही चिंता नहीं थी, बल्कि साथ ही, मुझे बच्चों की देखभाल में अपनी पत्नी के साथ हाथ भी बंटाना था. बच्चों को संभाल पाना हम दोनों के लिए ही बहुत बड़ा काम था. कई बार तो ऐसा होता कि मैं काम करता और उसे बच्चों को संभालना पड़ता. हालांकि, मेरे सहकर्मियों और मेरी कंपनी ने मेरा काफी सहयोग किया और मुझे अपनी इच्छानुसार शिफ्ट में काफ करने की छूट दे दी, जो कि सबसे जरूरी था.
लॉकडाउन के चलते जाना कैसे होती है मासूमों की देखभाल
सभी चुनौतियों के बावजूद, पिता बनने की खुशी का अहसास कभी भी कम नहीं हुआ. मुझे उन्हें सुलाने, खिलाने-पिलाने, उनके डायपर बदलने, कपड़े धोने, फीडिंग बॉटल धोने आदि में आनंद आता था. मैं हमारे नन्हें-मुन्नों के साथ अपनी पत्नी की हरसंभव मदद करना चाहता था. मैंने जाना कि किस तरह से माता-पिता दोनों को हाथ बंटाना जरूरी होता है और यह सब कुछ लॉकडाउन के चलते संभव हो सका.
पांच महीने के बेटे ने लाया बदलाव: प्रणित सुराना
यांसन इंडिया के सीनियर प्रोडक्ट मैनेजर, प्रणित सुराना बताते हैं कि किस तरह से उनके पांच महीने के बेटे ने उनके जीवन में बदलाव ला दिया है. लॉकडाउन के दौरान, लोगों की जिम्मेदारी कई गुनी बढ़ गई है और खासकर उन पैरेंट्स रिस्पांसबिलिटी बहुत बढ़ गयी है, जिनके बच्चे अभी बहुत छोटे हैं. मुझे बताते हुए गर्व हो रहा है कि मैं अब एक पिता की जिम्मेवारियों को बेहतर समझने लगा हूं. मैं इस लॉकडाउन के चलते मेरी जिंदगी में आये पितृत्व के अहसास को शब्दों में बयां नहीं कर सकता. यह मेरे लिए आशा की किरण है.
यदि मैं ऑफिस जाकर काम करता, तो अपने बच्चे को चलने की कोशिश करने और पेट के बल पलटना देखने जैसी अद्भुत खुशी का किसी भी स्थिति में आनंद नहीं ले पाता. मुझे लगता है कि इस कोविड-19 इमर्जेंसी के बीच इन बहुमूल्य पलों को जीने से बड़ी खुशी मुझे नहीं मिल सकती थी.