धर्म-अध्यात्म

Published: Oct 07, 2020 11:05 AM IST

धर्म-अध्यात्मरोहिणी व्रत करने से पति की दिर्घायु के साथ पूरे परिवार की खुशियाँ प्राप्त होती है

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

-सीमा कुमारी 

हिन्दू धर्म में पति की लम्बी आयु को लेकर कई पर्व मनाएं जाते है, जैसे की करवा चौथ, तीज, वट सावित्री व्रत, उसी प्रकार एक त्यौहार है, जैन समुदाय में रोहिणी व्रत. इस त्यौहार में भी सुहागिन महिला अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत करती है. भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है. यह स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है. इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं. रोहिणी जैन और हिंदू कैलेंडर में सत्ताईस नक्षत्रों में से एक नक्षत्र है, जो भी रोहिणी व्रत का पालन भक्तिभाव और श्रद्धापूर्वक करता उसके जीवन के सभी कष्ट और दरिद्रता का अंत होता है.

27 नक्षत्रों में शामिल रोहिणी नक्षत्र का जैन समुदाय में एक महत्वपूर्ण स्थान है. साल में कुल बारह रोहणी व्रत होते है. इसे करने से पहले यह जान ले की रोहणी व्रत कम से कम तीन, पांच या सात वर्षों के लिए किया जाता है. इसके बाद यह आपकी इच्छा पर हैं. पूरी निष्ठा से किया गया व्रत आपको उचित फल देता है. रोहिणी व्रत को उद्यापन के साथ ही समाप्त करना चाहिए अन्यथा व्रत को सफल नहीं मन जाता है और इस अवस्था में पूजा का फल नहीं मिलता है.

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ – सुबह 5 बजकर 55 मिनट से (6 अक्टूबर 2020) 

रोहिणी नक्षत्र समाप्त – 8 बजकर 36 मिनट तक (7 अक्टूबर 2020)

जिस दिन रोहिणी व्रत मनाया जाता है उस दिन सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र रहता है. ऐसा बोला जाता है कि जो लोग रोहिणी व्रत का पालन करते हैं, वे सभी प्रकार के दुखों, दर्द और दरिद्रता से छुटकारा पा सकते हैं. रोहिणी नक्षत्र का पारगमन रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर मार्गशीर्ष नक्षत्र के दौरान किया जाता है.

सुबह जल्दी उठकर महिलाएं स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहन कर इस व्रत का तैयारी में लग जाती है. इस व्रत में भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है. पूजा के लिए वासुपूज्य भगवान की पांचरत्न, ताम्र या स्वर्ण प्रतिमा की स्थापना की जाती है. उनकी आराधना करके दो वस्त्रों, फूल, फल और नैवेध्य का भोग लगाया जाता है. बोला जाता है की इस दिन दिल खोल के दान, धर्म किया जाता है. इस दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को दान करें. इससे पुण्य में वृद्धि  होता है, इसलिए रोहिणी व्रत में दान देने का महत्व है.