धर्म-अध्यात्म

Published: Apr 14, 2023 05:01 PM IST

Parshuram Jayanti 2023राम कैसे हुए 'परशुराम', जानिए 'पहले' राम के माता-पिता का नाम और जानिए इस साल कब है 'परशुराम जयंती'

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

सीमा कुमारी

नई दिल्ली: हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ‘परशुराम जयंती’ (Parshuram Jayanti) मनाई जाती है। इस साल यह जयंती 22 अप्रैल 2023, शनिवार को है। इसके अलावा, इस दिन अक्षय तृतीया भी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अपना 6वां अवतार लिया था। ‘परशुराम जयंती’ भारत सहित अन्य देशों में भारतीय द्वारा अत्यंत ही श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है।

भगवान परशुराम का जन्म भले ही ब्राह्मण कुल में हुआ हो लेकिन उनके गुण क्षत्रियों की तरह थे। ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पांच पुत्रों में से चौथे पुत्र परशुराम थे। परशुराम भगवान भोलेनाथ के परम भक्त थे।

भगवान परशुराम जी ने एक युद्ध में 21 प्रजा शोषक, धर्मांध, और आताताई राजाओं का संहार किया था। लेकिन दुष्प्रचार के कारण यह बताया गया कि इन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। किसी धर्म जाति वर्ण या वर्ग विशेष के आराध्य ही नहीं बल्कि वे समस्त मानव मात्र के आराध्य हैं। इस दिन विष्णु जी की आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। परशुराम भगवान का नाम जब भी आता है तो क्रोध का ज्ञान होता है। आइए जानें भगवान परशुराम का नाम परशुराम क्यों पड़ा?

कथा  

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के छठवें अवतार के रूप में माना जाता है। उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था।उनके पिता ऋषि जमदग्नि थे। ऋषि जमदग्नि ने चंद्रवंशी राजा की पुत्री रेणुका से विवाह किया था। ऋषि जमदग्नि और रेणुका ने पुत्र की प्राप्ति के लिए एक महान यज्ञ किया।

इस यज्ञ से प्रसन्न होकर इंद्रदेव ने उन्हें तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया और अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जी ने जन्म लिया। ऋषि ने अपने पुत्र का नाम राम रखा था। राम ने शस्त्र का ज्ञान भगवान शिव से प्राप्त किया और शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें अपना फरसा यानी परशु प्रदान किया। इसके बाद वह परशुराम कहलाए।

परशुराम को चिरंजीवी कहा जाता है वह आज भी जीवित हैं। उनका वर्णन रामायण और महाभारत दोनों काल में होता है। श्री कृष्ण को उन्होंने सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था और महाभारत काल में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया था।