धर्म-अध्यात्म

Published: Apr 17, 2024 09:47 AM IST

Chaitra Jawara Visarjan 2024चैत्र नवरात्रि में बोए जवारे का विधिवत करें विसर्जन, दशमी को शुभ मुहूर्त में पूजा के बाद करें यह कार्य, जानिए

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
नवरात्रि के बाद विधिवत करें जवार विसर्जन (डिजाइन फोटो)

सीमा कुमारी

नवभारत लाइफस्टाइल डेस्क: नवरात्रि पर्व (Chaitra Navratri 2024) सनातन धर्म में बहुत ही अधिक महत्व रखता है। नवरात्रि में 9 दिनों तक माता के 9 स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। इन दिनों और भी कई सारी परंपराओं का पालन किया जाता है। इन्हीं परंपराओं में से एक जवारे बोने की परंपरा है। नवरात्रि के पहले दिन जवारे बोए जाते हैं और नवरात्रि के बाद दशमी तिथि को जवारे का विसर्जन (Jawara Visarjan 2024) किया जाता है। इस बार ‘चैत्र नवरात्रि’ (Chaitra Navratri 2024) पर बोए गए जवारे का विसर्जन चैत्र शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को किया जाएगा। तो आइए जान लीजिए जवारे विसर्जन कब करें, शुभ मुहूर्त क्या है, पूजा विधि क्या है और महत्व क्या है-

शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 17 अप्रैल बुधवार के दिन दोपहर 03 बजकर 18 अप्रैल से लेकर 18 अप्रैल गुरुवार को शाम 5 बजकर 31 मिनट तक है, लेकिन दशमी तिथि का सूर्योदय 18 अप्रैल को होगा। इसलिए इसी दिन जवारे विसर्जन किए जाएंगे। इस दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं।

शुभ मुहूर्त – सुबह 10 बजकर 51 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक है।

शुभ मुहूर्त – अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजे से लेकर दोपहर 12 बजकर 51 मिनट तक है।

शुभ मुहूर्त – दोपहर 12 बजकर 26 मिनट से लेकर दोपहर 2 बजे तक है।

शुभ मुहूर्त – दोपहर 2 बजे से लेकर दोपहर 3 बजकर 35 मिनट तक है।

जवारे विसर्जन किस विधि से करें

ज्योतिषियों के अनुसार, ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। उसके बाद मुहूर्त के हिसाब से देवी मां की विधिवत पूजा करें।

सबसे पहले माता रानी को गंध, चावल, फूल आदि अर्पित करें और इस मंत्र को बोलें-

रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे।

पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।।

महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी।

आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।

माता रानी की पूजा करने के बाद जवारे की पूजा करें। चावल, फूल, कुमकुम आदि चढ़ाएं। इन जवारों को माथे पर रखकर माता के भजन करने के साथ नदी या तालाब तक लेकर जाएं।

जवारों का विसर्जन करने से पहले हाथ में चावल और फूल लेकर इस मंत्र को बोलें-

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि।

पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।

जवारे विसर्जन करने के बाद माता रानी को प्रणाम करें और घर की सुख-समृद्धि के लिए विनती करें।

जवारे बोए जाने का महत्व

नवरात्रि पर्व में जवारे बोने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। नवरात्र में जौ बोने और नौ दिनों के बाद उन्हें विसर्जित करना व्यक्ति का प्रकृति के प्रति समर्पण का प्रतीक है। नवरात्र में जवारों के साथ की जाने वाली घट स्थापना की रीति का विशेष महत्व और विधान है। जौ को ब्रह्मा जी का स्वरूप है। क्योंकि इनके द्वारा ही इसकी उत्पत्ति की गई थी। अनाज में सबसे पहले इसे ही उगाया गया था। जिस कारण जवार को अन्नपूर्णा भी कहा जाता है। साथ ही हर शुभ कार्य में सुख-समृद्धि के लिए जवारे बोए जाते हैं।