धर्म-अध्यात्म

Published: Oct 20, 2020 01:26 PM IST

नवरात्रि विशेष: जानें देवी के शक्तिपीठ और उनसे जुड़ी मान्यताएं

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

हिंदू मान्यता के अनुसार, देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। वहीं ऐसा भी माना जाता है कि जब सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। तब शिवजी अपनी पत्नी सती का जला हुआ अंग लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। तो आइये आज हम आपको बताते हैं 52 शक्तिपीठों में 5 शक्तिपीठों के बारे में…

हिंगलाज शक्तिपीठ:

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगलाज में हिंगोल नदी के तट पर स्थित एक हिन्दू मंदिर है। यह देवी सती को समर्पित 52 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ इस देवी को हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी भी कहते हैं। इस मंदिर को नानी मंदिर के नाम से भी जाना जाता । पिछले तीन दशकों में इस जगह ने काफी लोकप्रियता पाई है और यह पाकिस्तान के कई हिंदू समुदायों के बीच आस्था का केन्द्र बन गया है।

यह डोडिया राजपूत की प्रथम कुलदेवी हैं। एक लोक गाथानुसार, चारणों तथा राजपुरोहितों की कुलदेवी हिंगलाज थी, जिसका निवास स्थान पाकिस्तान के बलुचिस्तान प्रांत में था। हिंगलाज नाम के अतिरिक्त हिंगलाज देवी का चरित्र या इसका इतिहास अभी तक अप्राप्य है। हिंगलाज देवी से संबंधित छंद गीत अवश्य मिलते हैं।

सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास।
प्रात:आप तिहु मात हिंगलाज गिर में॥

अर्थात: सातो द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती हैं और प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती है।

उत्पत्ति की एक और कथा के अनुसार सती के वियोग मे क्षुब्ध शिव जब सती की पार्थिव देह को लेकर तीनों लोको का भ्रमण करने लगे तो भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 52 खंडों मे विभक्त कर दिया जहाँ जहाँ सती के अंग- प्रत्यंग गिरे स्थान शक्तिपीठ कहलाये । केश गिरने से महाकाली,नैन गिरने से नैना देवी, कुरूक्षेत्र मे गुल्फ गिरने से भद्रकाली,सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शाकम्भरीआदि शक्तिपीठ बन गये सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था। इसकी शक्ति “कोट्टरी” और भैरव “भीमलोचन” को कहते हैं। 

ज्वाला शक्तिपीठ:

ज्वाला मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर स्थित है। यह बेहद ही प्रसिद्ध मंदिर है और 52 शक्तिपीठों में से एक है। ज्वाला मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर और नगरकोट के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भीड़ बहुत होती है। ज्वाला देवी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। उन्हीं के द्वारा इस पवित्र धार्मिक स्थल की खोज हुई थी। 

यह माता का मंदिर बाकि मंदिरों से अलग इसलिए है कि यहां किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। इस ज्वाला को मुगल बादशाह अकबर ने कई बार बुझााने की कोशिश की थी, लेकिन वो हमेशा नाकाम रहा था। साथ ही वैज्ञानिक भी इस ज्वाला के लगातार जलने का कारण आज तक नहीं जान पाए हैं।

घोररुपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥

अर्थात: भयानक रूपवाली, घोर निनाद करनेवाली, सभी शत्रुओं को भयभीत करनेवाली तथा भक्तों को वर प्रदान करनेवाली है देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

मान्यता के अनुसार इस स्थल पर माता सती की जीभ गिरी थी। वहीं इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते है। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग अलग जगहों पर ज्वालाएं निकल रही हैं, जिसके ऊपर मंदिर बना दिया गया है। इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।  इसकी शक्ति “सिधिदा (अंबिका)” और भैरव, “उन्मत्त भैरव” को कहते हैं। 

त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ:

पंजाब के जालंधर में उत्तर की तरफ रेलवे स्टेशन से सिर्फ 1 किमी की दुरी पर माँ भगवती कात्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ स्थित है। यह मंदिर माँ त्रिपुरमालिनी देवी मंदिर और देवी तालाब मंदिर नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भी सारे शक्तिपीठों में से एक है।

इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि, माँ सती का इस जगह बाया वक्ष गिरा था। नवरात्रि के दौरान यहां की धूम देखने योग्य होती है। भारी संख्या में भक्त यहां आकर माता के चरणों में नमन करते हैं। इस मंदिर में शिवा की भीसन मानकर पूजा की जाती है। मंदिर का शिखर सोने से बनाया गया है।

नमो देवी महाविद्ये नमामि चरणौ तव।
सदा ज्ञानप्रकाशं में देहि सर्वार्थदे शिवे॥ 

अर्थात: हे देवि ! आपको नमस्कार है । हे महाविद्ये ! में आपके चरणों में बार-बार नमन करता हूँ । सर्वार्थदायिनी शिवे ! आप मुझे सदा ज्ञानरूपी प्रकाश प्रदान कीजिए।  

कहा जाता है कि, यह मंदिर 200 साल पुराना है। इसे ‘स्तनपीठ’ भी कहा जाता है। जिसमें देवी का वाम स्तन कपड़े से ढका रहता है और धातु से बना मुख के दर्शन किया जाता है। यह मंदिर तालाब के मध्य स्तिथ है, जहां जाने के लिए 12 फिट चोड़ी जगह है| मुख्य भगवती के मंदिर में तीन मूरत है, माँ भगवती के साथ माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती विराजमान है| इसकी शक्ति ‘त्रिपुरमालिनी’ तथा भैरव ‘भीषण’ हैं। 

बैद्यनाथ शक्तिपीठ: 

झारखंड के देवघर स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैद्यनाथ धाम में भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में नौवां ज्योतिर्लिंग और साथ ही शक्तिपीठ भी है। इस शक्तिपीठ को ‘हृदय पीठ’ या ‘हार्द पीठ’ भी कहा जाता है। यह भारत देश का एकमात्र ऐसा स्थल है, जहां ज्योतिर्लिंग के साथ शक्तिपीठ भी है।

सौम्यक्रोधधरे रुपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते।
सृष्टिरुपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम् ॥ 

अर्थात: सौम्य क्रोध धारण करनेवाली, उत्तम विग्रहवाली, प्रचण्ड स्वरूपवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है । हे सृष्टिस्वरूपिणि आपको नमस्कार है । आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।  

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब शिव भगवन को शांत करने के लिए विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित करने लगे तो सती के अंग में से यहां उनका हृदय गिरा था, जिस कारण यह स्थान ‘हार्दपीठ’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। देवघर में काली और महाकाल के महत्व की चर्चा तो पद्मपुराण के पातालखंड में भी की गयी है। यहां की शक्ति “जयदुर्गा” तथा भैरव “वैद्यनाथ” हैं।

सुगंधा शक्तिपीठ:  


बांग्लादेश के शिकारपुर में बरिसल से उत्तर में 21 किमी दूर शिकारपुर नामक गांव में सुनंदा नदी (सोंध) के किनारे स्थित है मां सुगंध  शक्तिपीठ। जहां माता की नासिका गिरी थी। यहां का मंदिर उग्रतारा के नाम से काफी प्रसिद्ध है। यह मंदिर पत्थर का बना हुआ है। मंदिर की पत्थर की दीवारों पर भी देवी-देवताओं के चित्र उत्कीर्ण हैं।

जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढ़ता हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥

अर्थात: आप मूर्खों की मूर्खता का नाश करती हैं और भक्तों के लिये भक्तवत्सला हैं । हे देवि ! आप मेरी मूढ़ता को हरें और मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

इस शक्तिपीठ का नाम भरतचंद्र की बांग्ला कविता ‘अन्नादामंगल’ में मिलता है। यहां पर स्थापित प्राचीन मूर्ति तो चोरी हो गई और उसके स्थान पर नई मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति बौद्ध तंत्र से संबंधित मानी जाती है। उग्रतारा सुगंदा देवी के पास तलवार, खेकड़ा, नीलपाद, और नरमुंड की माला है। कार्तिक, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश उनके ऊपर स्थापित हैं। यहां की शक्ति “सुनंदा” और भैरव “त्रयम्बक” हैं।