धर्म-अध्यात्म
Published: Apr 08, 2022 07:00 AM ISTChaitra Navratri 2022नवरात्रि के सातवें दिन होगी 'मां कालरात्रि' की महापूजा, जानिए पूजन-विधि और मंत्र
-सीमा कुमारी
आज यानी 08 अप्रैल, चैत्र नवरात्रि का सांतवा दिन है। मां दुर्गा का सप्तम रूप ‘कालरात्रि’ हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए ‘कालरात्रि’ कहलाती हैं। ‘नवरात्रि’ के सप्तम दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। ये दुष्टों का संहार करती हैं।
इनका रूप देखने में अत्यंत भयंकर है, परंतु ये अपने भक्तों को हमेशा शुभ फल प्रदान करती हैं, इसलिए इन्हें ‘शुभंकरी’ भी कहा जाता है। इनका वर्ण काला है और त्रिनेत्रधारिणी हैं। मां के केश खुले हुए हैं और गले में मुंड की माला धारण करती हैं। ये गदर्भ (गधा) की सवारी करती हैं। इनके नाम का उच्चारण करने मात्र से बुरी शक्तियां भयभीत होकर भाग जाती हैं। आइए जानें ‘मां कालरात्रि’ की कथा, पूजा-विधि, मंत्र और मां का प्रिय भोग-
मां कालरात्रि की इस तरह करें पूजा
इस दिन सुबह के समय उठ जाना चाहिए और सभी नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि कर लें। फिर मां की पूजा आरंभ करें। सर्वप्रथम गणेश जी की अराधना करें। कलश देवता की विधिवत पूजा करें। इसके बाद मां को अक्षत, धूप, रातरानी के पुष्प, गंध, रोली, चंदन अर्पित करें। इसके बाद पान, सुपारी मां को चढ़ाएं। घी या कपूर जलाकर माँ की आरती करें। व्रत कथा सुनें। मां को गुड़ का नैवेद्य अर्पित करें। अपनी सामर्थ्यनुसार ब्राह्यणों को दान दें। इससे आकस्मिक संकटों से रक्षा करती हैं।
मां कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय जय महाकाली
काल के मुंह से बचाने वाली
दुष्ट संहारिणी नाम तुम्हारा
महा चंडी तेरा अवतारा
पृथ्वी और आकाश पर सारा
महाकाली है तेरा पसारा
खंडा खप्पर रखने वाली
दुष्टों का लहू चखने वाली
कलकत्ता स्थान तुम्हारा
सब जगह देखूं तेरा नजारा
सभी देवता सब नर नारी
गावे स्तुति सभी तुम्हारी
रक्तदंता और अन्नपूर्णा
कृपा करे तो कोई भी दु:ख ना
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी
ना कोई गम ना संकट भारी
उस पर कभी कष्ट ना आवे
महाकाली मां जिसे बचावे
तू भी ‘भक्त’ प्रेम से कह
कालरात्रि मां तेरी जय
कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, रक्तबीज नाम का एक राक्षस था। मनुष्य के साथ देवता भी इससे परेशान थे।रक्तबीज दानव की विशेषता यह थी कि जैसे ही उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरती तो उसके जैसा एक और दानव बन जाता था। इस राक्षस से परेशान होकर समस्या का हल जानने सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव को ज्ञात था कि इस दानव का अंत माता पार्वती कर सकती हैं।
भगवान शिव ने माता से अनुरोध किया। इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति व तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को ‘मां कालरात्रि’ ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस रूप में मां पार्वती ‘कालरात्रि’ कहलाई।
मां कालरात्रि मंत्रः
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।