धर्म-अध्यात्म

Published: Feb 21, 2020 11:01 AM IST

धर्म-अध्यात्ममहाशिवरात्रि विशेष: कानों में बिच्छू, गले में मुंडमाला, ऐसे दूल्हा बने थे शम्भू

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

शिवरात्रि का पर्व सनातन धर्म में विशेष महत्त्व रखता है। इस पर्व को विश्व में और खासकर भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। शिवरात्रि विशेषतः भगवान शिव के विवाह की रात्रि को स्मरण कर मनाई जाती है। भगवान की बरात में सारी सृष्टि के जीव बाराती बनकर उनके साथ राजा हिमाचल के द्वार पहुंचे थे। यह तो रही बात भोलेनाथ के बारात की जिसकी कहानी मुख्यतः सभी को ज्ञात है। किन्तु आज इस लेख से आप ये जानेगे की शम्भू को दूल्हे की तरह किसने और कैसे सजाया था।

महादेव, शम्भू, पशुपति, भूतनाथ, भोलेनाथ, महाकाल आदि नामों से भगवान ईशान के भक्त उन्हें स्मरण करते हैं, उनकी पूजा आराधना करते हैं। खैर ये सब तो रहीं भोलेनाथ से जुडी प्रचलित कथाएँ, आइए जानते हैं महादेव के दूल्हे की तरह सजने की अद्भुत कथा।जब महादेव ने देवी सती के वियोग में सृष्टि को त्याग दिया था और घोर तपस्या में लीन हो गए थे, तब सभी देवता, ब्रह्मा, विष्णु आदि चिंतित थे। सृष्टि का संतुलन बनाने हेतु भोलेनाथ की अति आवश्यकता थी। किसी तरह उन्हें विवाह के लिए  मनाया गया। देवी पार्वती से विवाह को तैयार होने के बाद शिवजी अपने निवास स्थान कैलाश में अकेले रह गए। सभी देवी देवता, भोले की बारात में चलने को स्वयं तैयार होने अपने-अपने लोक को चल दिए। 

वह नीलकंठ, सुखधाम कहे जानेवाले ईश्वर, चिंता में बैठे ये सोचने लगे, “कि मैं तो अजन्मा हूँ, मेरी न माता है, न पिता, न भाई है न बहन, कल विवाह है, मुझे कौन तैयार करेगा?”मरघट (शमशान) में बैठे भोलेनाथ शम्भू ने सदैव अपने साथ रहने वाली श्रृंगी में अनायास फूँक मारी और पुनः शांती से बैठ गए। आदिदेव यह भूल गए कि श्रृंगी की आवाज सुनकर संसार के सभी भूत, पिशाच, जिन, प्रेत आदि, अपने आराध्य की शरण में आ जाते हैं। भगवान के यह अनोखे और कहा जाए, तो डरावने भक्त अपने ईश के समक्ष पहुँच गए। सभी भूतनाथ को देखकर चिंतित थे कि, ‘ये देवों के देव किस चिंता में हैं।’ 

एक प्रेत ने हिम्मत कर शिव गणों को बुलाया और उनसे पूछा कि बात क्या है। फिर सभी ने मिलकर नंदी से आग्रह किया कि वो भगवान को बस उनके स्थान पर बिठा दें, बाकी उनको तैयार हमसब करेंगे। भगवान को उनके स्थान पर बिठाने के बाद, सभी भूत-प्रेतों ने अपनी-अपनी समझ अनुसार भोलेनाथ को दूल्हे की तरह सजाया। एक पिशाच, एक फूटे मटके में जल भरके ले आया, फिर दूसरा झट से उठकर भूतनाथ का मुँह धोने लगा। एक प्रेत ने भगवान के कर्णों (कानों) में कुंडल की जगह बिच्छू लटका दिए, एक भटकती आत्मा ने महादेव के गले में सर्पराज और कई अन्य सर्पों को चमका कर उनके कंठ में पहना दिया। दूसरा तुरंत उठा और उसने महादेव के गले में मुंडो की माला पहना दी। चिता की भस्म, भोलेनाथ को हल्दी की तरह लगाई गई। दूल्हे को फेटा पहनाने के लिए एक चंडाल ने उनकी लम्बी जटाओं का सुन्दर सा फेटा बना दिया। भूतनाथ के इस सुन्दर से फेटे पर हड्डियों का एक सेहरा भी पहनाया गया। 

भगवान के शीश पर मौजूद चंद्र को उतार कर एक प्रेत ने उसे राख से साफ कर फिर उनके शीश पर लगा दिया। फिर बारी थी शम्भू के आँखों में सुरमा लगाने की, जिसके लिए हर कोई आगे आने से डर रहा था। क्यूंकि यदि बाबा की तीसरी आँख खुली तो फिर क्या होगा। इसी का अंजाम सोच सब भयभीत थे। अतः साहस दिखाते हुए एक भूत ने भगवान की अनुमति ले उनकी आँखों में सुरमा लगाया। फिर देवों के देव महादेव अपने वाहन नंदी पर सवार हो, संग भूतों की टोली ले बारात के लिए निकले। महादेव के साथ सृष्टि के सभी जीव उनके बाराती बन बारात का हिस्सा हो लिए। भगवान का यह श्रृंगार देख सभी देव, मनुष्य, गंधर्व आदि अचंभित थे और प्रसन्न भी।

यह अपने आप में अप्रतिम, अनोखी और विरली कहानी है, बशर्ते इसे कम ही लोग जानते हैं। यह थी बाबा भोले, इस अनोखे दूल्हे के सजने की चकित कर देने वाली कथा।