धर्म-अध्यात्म

Published: Oct 19, 2020 06:49 AM IST

नवरात्रि स्पेशल भय और पाप से मुक्ति दिलाती है माँ चंद्रघंटा, ऐसे करें आज पूजा

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

-सीमा कुमारी 

आज नवरात्रि की तीसरी दिन है और तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. देवी चंद्रघंटा के सिर पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र होता है. यही कारण है कि माता के भक्त उन्हें चंद्रघंटा माता कहकर बुलाते हैं. देवी चंद्रघंटा का वाहन सिंह होता है. मां की 10 भुजाएं, 3 आंखें, 8 हाथों में खड्ग, बाण आदि अस्त्र-शस्त्र हैं.   इसके अलावा देवी मां अपने दो हाथों से अपने भक्तों को आशीष देती है. यदि आपके मन में किसी तरह का कोई भय बना रहता है, तो आप मां के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा का पूजन करें. 

नवरात्रि का तीसरा दिन भय से मुक्ति और अपार साहस प्राप्त करने का होता है. तीसरा दिन बेहद महत्वपूर्ण होता है क्योंकि समस्त पाप और बाधाएं खत्म हो जाती है. वहीं, मां के घंटे की ध्वनि भक्तों को प्रेत बाधा से बचाती है. माँ का स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है. इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है. इनके दस हाथ हैं. इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं. इनका वाहन सिंह है. इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है.

मां चंद्रघंटा पूजा विधि:

मां चंद्रघंटा की कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा तो मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया. असुरों का स्वामी महिषासुर था, जिसका देवताओं से भंयकर युद्ध चल रहा था. महिषासुर देव राज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था. उसकी प्रबल इच्छा स्वर्गलोक पर राज करने की थी. उसकी इस इच्छा को जानकार सभी देवता परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने उपस्थित हुई.

देवताओं की बात को गंभीरता से सुनने के बाद तीनों को ही क्रोध आया. क्रोध के कारण तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई. उससे एक देवी अवतरित हुईं. जिन्हें भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया. इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अपने अस्त्र सौंप दिए. देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया. सूर्य ने अपना तेज और तलवार दी, सवारी के लिए सिंह प्रदान किया.इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर के पास पहुंची. मां का ये रूप देखकर महिषासुर को ये आभास हो गया कि उसका काल आ गया है. महिषासुर ने मां पर हमला बोल दिया. इसके बाद देवताओं और असुरों में भंयकर युद्ध छिड़ गया. मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार किया. इस प्रकार मां ने देवताओं की रक्षा की.