धर्म-अध्यात्म

Published: May 29, 2021 06:11 PM IST

धर्म-अध्यात्मआज है 'एकदंत संकष्टी चतुर्थी', जानें शुभ- मुहूर्त, पूजा-विधि और महिमा

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

– सीमा कुमारी 

सनातन हिंदू धर्म में ‘संकष्टी चतुर्थी’ का बड़ा महत्व है। हर महीने दो चतुर्थी आती है। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। शास्त्रों के अनुसार, चतुर्थी तिथि बुद्धि और शुभता के देव भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती है।

इस महीने वैशाख कृष्ण पक्ष को ‘एकदंत संकष्टी चतुर्थी’ 29 मई, यानी अगले शनिवार को है। मान्यताएं हैं कि इस दिन भक्तगण सुख, शांति और समृद्धि के लिए एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी भगवान गणेश जी की पूजा-आराधना करते हैं।

कहा जाता है कि, इस विशेष दिन नियम और निष्ठा के साथ भगवान गणराया की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के कार्यों में आने वाले विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं। ‘एकदन्त संकष्टी चतुर्थी’ (Ekdant Sankashti Chaturthi) के दिन शुभ और शुक्ल दो शुभ योग बन रहे हैं। शुभ योगों के बनने के कारण संकष्टी चतुर्थी का महत्व बढ़ रहा है।

‘एकदंत संकष्टी चतुर्थी’ तिथि के दिन शुभ योग सुबह 11 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इसके बाद शुक्ल योग लग जाएगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शुभ और शुक्ल योग में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होती है।

आइए जानें ‘एकदन्त संकष्टी चतुर्थी’ का मुहूर्त और व्रत-विधि:

 शुभ- मुहूर्त

पूजा-विधि:

मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं और हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प करें। ब्रह्मचर्य का पालन जरूर करना चाहिए। मंदिर में देवी- देवताओं को स्नान कराएं और उन्हें भी साफ लाल या पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र पहनाएं। इसके बाद एक लकड़ी की चौकी पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। प्रतिमा को इस तरह से स्थापित करें कि पूजा करते समय आपका मुख उत्तर या पूर्व दिशा में रहे।

अब भगवान गणेश के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें और सिंदूर, अक्षत, दूर्वा एवं पुष्प से पूजा-अर्चना करें। पूजा के दौरान ‘ॐ गणेशाय नमः’ या ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्रों का उच्चारण सदहृदय से करें। भगवान गणेश की आरती करें और उन्हें मोदक, लड्डू या तिल से बने मिष्ठान का भोग चढ़ाएं। शाम को व्रत की कथा करें। इसके बाद और चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत तोड़ें।

इस के जाप से व्रती को सभी तरह की बाधाओं से मुक्ति मिलती है:

“गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।

नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक:।।

धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।

गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम।।”

‘संकष्टी चतुर्थी व्रत’ का महत्व:

‘संकष्टी चतुर्थी’ व्रत रखने से व्यक्ति के समस्त कष्ट और पाप मिट जाते हैं। भगवान श्री गणेश जी की कृपा से जीवन में धन, सुख और समृद्धि आती है। कई लोग संतान की प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को  रखते हैं। शास्त्रों के अनुसार, यह व्रत बड़ा फलदायनी माना जाता है।