धर्म-अध्यात्म
Published: Jul 09, 2022 06:07 PM ISTVasudev Dwadashi 2022आज है 'वासुदेव द्वादशी', संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत की महिमा जानिए
-सीमा कुमारी
‘वासुदेव द्वादशी’ का व्रत हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर रखा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित इस व्रत का सनातन धर्म में बड़ा महत्व है। इस व्रत को ‘देवशयनी एकादशी’ के अगले दिन रखा जाता है।
पारंपरिक मान्यता है कि इस व्रत के साथ चातुर्मास (Chaturmas) आरंभ हो जाता है। और, ‘वासुदेव द्वादशी’ के दिन भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा होती है। सदियों से मानते हैं कि निश्छल और सदहृदय से व्रत को करने से भक्तों की इच्छा पूरी होती है। आइए जानें ‘वासुदेव द्वादशी’ की तिथि, इसकी महिमा और पूजा-विधि के बारे –
वासुदेव द्वादशी की तिथि
पंचांग के अनुसार, वासुदेव द्वादशी आषाढ़ महीने की शुक्ल द्वादशी तिथि के दिन रखा जाता है। यानि ‘देवशयनी एकादशी’ के अगले दिन ‘वासुदेव द्वादशी’ का व्रत रखने का विधान है। इस साल ‘वासुदेव द्वादशी’ 10 जुलाई, रविवार को रखा जाएगा।
पूजा
वासुदेव द्वादशी के दिन सुबह उठकर शौच कर्म आदि से निवृत होकर भगवान श्रीकृष्ण और मां लक्ष्मी का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद पूजा शुरू करें। पूजन सामग्री में धूप-दीप, फल, फूल, अक्षत, दीपक और पंचामृत मां लक्ष्मी और भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करें। पूजा के अंत में आरती करें। पूरे दिन व्रत रखा जाता है। इसके बाद शाम के समय आरती के बाद फलाहार करें। अगले दिन सुबह पूजा के बाद जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा करें। उसके बाद भोजन करें।
‘वासुदेव द्वादशी व्रत’ की महिमा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जो व्यक्ति वासुदेव द्वादशी का व्रत रखते हुए भगवान कृष्ण के साथ मां लक्ष्मी जी की पूजा करता है, उसके घर में धन वैभव का अभाव नहीं होता है। साथ ही, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है। भगवान अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी प्रत्येक मनोकामना की पूर्ति करने में सहायक होते है। मान्यता है कि, भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं। निःसंतान महिलाएं इस व्रत को रखते हुए भगवान कृष्ण की पूजा करती हैं, तो उन्हें स्वस्थ संतान प्राप्ति भी होती है।