धर्म-अध्यात्म

Published: Feb 19, 2020 02:03 PM IST

धर्म-अध्यात्ममहाशिवरात्रि विशेष: महामृत्युंजय मंत्र के जाप से ऐसे बची जान, सुने मंत्र और अर्थ

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !!

यह मंत्र सुनते ही एक अलग सी सकारात्मक शक्ति का आभास होता हैं. शिवपुराण सहित कई अन्य ग्रंथो में इस प्रभावी मंत्र का महत्व बताया गया हैं. वही ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक इस मंत्र का उल्लेख किया गया हैं. इस मंत्र को कई नामों और रूपों में जाना जाता हैं. भगवान शंकर के उग्र रूप को चिन्हित करते हुए इस मंत्र को रुद्र मंत्र भी कहा जाता हैं. भगवान शिव के त्रिनेत्र की तरफ संकेत करने वाले इस मंत्र को त्रयंबकम मंत्र और कठोर तपस्या की ओर इशारा करने वाले इस मंत्र को मृत-संजीवनी मंत्र भी कहा जाता हैं.

महामृत्युंजय मंत्र का सरल अर्थ: इस मंत्र का मतलब है कि हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं।

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कैसे हुई महामृत्युंजय जाप की उत्पत्ति:
पौराणिक कथाओं में इसका वर्णन मिलता है जिसके मुताबिक भोले नाथ के अनन्य भक्त मृकण्ड नामक एक ऋषि थे जो पूरी निष्ठा से भगवन को समर्पित थे. लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी. उनका विश्वास था कि देवों के देव महादेव अगर उन पर प्रसन्न हो जाएंगे तो उन्हें संतान की प्राप्ति अवश्य होगी. इस मंशा से उन्होंने भोले नाथ की घोर तपस्या की. उनकी तपस्या देख भगवान ने उन्हें दर्शन दिया और उनसे वरदान मांगने को कहा तब ऋषि ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा ज़ाहिर की. तभी भगवान ने उन्हें वरदान तो दिया लेकिन आगाह भी किया. इसके बाद भी मृकण्ड ऋषि ने वरदान स्वीकार किया.

भोले भंडारी की कृपा से ऋषि को पुत्र प्राप्ति हुई जिनका नाम मार्कण्डेय रखा गया. लेकिन जब ज्योतिषियों ने मार्कण्डेय की कुंडली देखी तो उन्होंने ऋषि और उनकी पत्नी को बताया कि बालक अल्पायु है. यह सुन ऋषि और उनकी पत्नी दुखी हो गए. लेकिन उनका पूरा विश्वास था कि जिन भगवान शंकर ने उन्हें यह वरदान दिया है वहीं उनके बालक को जीवन दान भी देंगे. 

जैसे जैसे मार्कण्डेय ऋषि बड़े होने लगे उनकी माता को डर सताने लगा और एक दिन उन्होंने अपने पुत्र को उसके अल्पायु होने का सत्य बता दिया. तब मार्कण्डेय ने प्रण किया कि वह अपने माता-पिता की खुशी के लिए भगवान शिव से दीर्घाय का वरदान प्राप्त करेंगे. तत्पचात ऋषि मार्कण्डेय ने एक मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर जाप करने लगे. यह वही मंत्र है जिसका वर्णन हमने ऊपर किया हैं. जिसे हम महामृत्युंजय मंत्र भी कहते हैं. जब बालक मार्कण्डेय को यमराज के दूत लेने आए तब वह भोलेनाथ का ध्यान कर रहे थे. यमराज के दूत ने उन्हें बताया कि वह बालक को लाने का साहस नहीं कर पा रहे है. 

इसपर यमराज क्रोधित हो खुद बालक मार्कण्डेय को लेने आ गए. जब यमराज पहुचे तब बालक महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर शिवलिंग से लिपटा हुआ था. यमराज ने बालक को जोर से खीचा तभी भूकंपन सा अनुभव हुआ और शिवलिंग से महाकाल प्रकट हुए. उन्होंने अत्यंत क्रोधित हो यमराज से कहा… मेरी साधना में लीन भक्त को ले जाने का दुस्साहस कैसे किया तुमने? यमराज ने भयभीत होकर जवाब दिया…भगवन मैं आप का सेवक हूं और आपने ही जीवों से प्राण हरने का हक मुझ दिया है. यह सुन भगवान शांत हुए और बोले.. .तुम ठीक कह रहे हो परंतु इस बालक की भक्ति से मैं प्रसन्न हुआ और इसे जीवन दान देता हूँ. इसलिए तुम इसे नहीं ले जा सकते. भगवान के आदेश का पालन करते हुए यमराज वहां से चले गए और जाते जाते कह गए कि  मैं आज क्या कभी भी आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा. तो इस तरह हुई  इस मंत्र की रचना जिसका पाठ करने वाला अपने काल को भी हरा सकता हैं और उसपर सदा भोलेनाथ की असीम कृपा होती हैं.