धर्म-अध्यात्म

Published: Oct 22, 2020 06:32 AM IST

नवरात्रि स्पेशल क्या है मां कात्यायनी के नाम का अर्थ, जानें उनकी महिमा

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

-सीमा कुमारी

आज नवरात्रि का छठा दिन है.  इस दिन ‘मां कात्यायनी’ की पूजा की जाती है. जिसका अर्थ “कात्यायन आश्रम में जन्मि” होता हैं. यह खास तौर पर विवाह योग्य कन्याओं के लिए विशेष पूजन तथा मनोकामना पूर्ति का दिन माना जाता है. नवरात्र के छठे दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है. योग साधना में आज्ञा चक्र का खास महत्व होता है. जातक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने के कारण देवी कात्यायनी के दर्शन आसानी से मिलते हैं. मां कात्यायनी का रूप भव्य तथा प्रभावशाली है. माँ कात्यायिनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है. वह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं. इनकी चार भुजाएं भक्तों को वरदान देती हैं. इनका एक हाथ अभय मुद्रा में रहता है, तो दूसरा वरदमुद्रा में रहता है. अन्य हाथों में तलवार और कमल का फूल धारण करती हैं. मां कात्यायनी सदैव शेर पर सवार रहती हैं. इन्होंने ही महिषासुर का वध किया था.

माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा?

कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे. उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए. इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे. इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी. उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें. माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली. कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया.

महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की. इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं. ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं. आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था.

माँ का महत्व:

मां कात्यायनी की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह में आ रही सभी परेशानियां समाप्त होती है और उन्हें एक सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है. माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं. जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँ की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए. इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए. साथ ही शहद यानि मधु का भोग लगाएं. ऐसा करने से सुंदर रूप की प्राप्ति होती है.