धर्म-अध्यात्म
Published: Apr 05, 2022 06:26 PM ISTChaitra Navratri 2022'नवरात्रि' के पांचवें दिन करें 'मां स्कंदमाता' की पूजा, संतान प्राप्ति की होगी कृपा, जानिए पूजा-विधि
-सीमा कुमारी
नौ दिनों की आराधना का महापर्व ‘नवरात्रि” शनिवार 2 अप्रैल से आरंभ हो चुका है। आज 6 अप्रैल, बुधवार को ‘नवरात्रि’ का पांचवां दिन है। यह दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप देवी ‘स्कंदमाता’ को समर्पित होता है। ‘स्कंदमाता’ की उपासना से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इनकी पूजा से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं।
शास्त्रों के अनुासर, इनकी कृपा से मूर्ख भी विद्वान बन सकता है। ‘स्कंदमाता’ पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वाली हैं। कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें ‘स्कंदमाता’ कहा जाता है। इनकी उपासना से सारी इच्छाएं पूरी होने के साथ भक्त को मोक्ष मिलता है। मान्यता ये भी है कि, इनकी पूजा से संतान-योग बढ़ता है। आइए जानें मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप के बारे में-
मां का स्वरूप
‘स्कंदमाता’ की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है।
पूजा-विधि
मां के श्रृंगार के लिए खूबसूरत रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। स्कंदमाता और भगवान कार्तिकेय की पूजा विनम्रता के साथ करनी चाहिए। पूजा में कुमकुम, अक्षत से पूजा करें। चंदन लगाएं। तुलसी माता के सामने दीपक जलाएं। पीले रंग के कपड़़ें पहनें।
मां ‘स्कंदमाता’ की पूजा पवित्र और एकाग्र मन से करनी चाहिए। स्कंदमाता की उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। इसके अलावा, स्कंदमाता की कृपा से संतान के इच्छुक दंपत्ति को संतान सुख प्राप्त हो सकता है। अगर बृहस्पति कमजोर हो तो ‘स्कंदमाता’ की पूजा आराधना करनी चाहिए। स्कंदमाता की विधि-विधान से की गई पूजा से कलह-कलेश दूर हो जाते हैं। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है।