धर्म-अध्यात्म

Published: Dec 10, 2022 03:45 PM IST

Sankashti Chaturthiइस साल की इस अंतिम 'संकष्टी चतुर्थी' की पूजा खोल सकती है भाग्‍य, जानें सही तिथि, मुहूर्त और इस संकष्टी की महिमा

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
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सीमा कुमारी

नई दिल्ली: साल 2022 की अंतिम ‘संकष्टी चतुर्थी’ (Sankashti Chaturthi) का व्रत 11 दिसंबर, रविवार के दिन है। पंचांग के अनुसार, हर महीने दो चतुर्थी आती है। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। पौष माह में आने वाली ये ‘अखुरथ संकष्टी चतुर्थी’ होगी। मान्यता है कि, इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। भगवान गणेश भक्तों के लिए विघ्नहर्ता माने जाते हैं। सच्चे मन से पूजा करने वालों की गणपति जी सारी तकलीफें हर लेते हैं। आइए जानें ‘संकष्टी चतुर्थी’ व्रत की तिथि, पूजा मुहूर्त पूजा-विधि और महिमा-

तिथि

पंचांग के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की ‘संकष्टी चतुर्थी’ 11 दिसंबर 2022 को शाम 4 बजकर 14 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन अगले दिन 12 दिसंबर 2022 को शाम 6 बजकर 48 मिनट पर किया जाएगा ।

चंद्रोदय समय

रात 08 बजकर 11 मिनट (11 दिसंबर 2022)

पूजा विधि

‘संकष्टी चतुर्थी’ के दिन आप प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करके साफ़ और धुले हुए कपड़े पहनें। कहते हैं कि अगर  इस दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करते हैं तो ये बेहद शुभ होता है।

इसके बाद गणपति की पूजा कीजिए और इस समय आपको अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए। गणपति को फल और फूल चढ़ाएं। पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल ताम्बे के कलश में पानी, धूप, चन्दन , प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रखें।  

पूरे दिन भगवान को याद करते हुए व्रत रखें और फिर शाम के समय चांद के निकलने से पहले गणेश जी की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा पढ़ें, फिर चंद्रमा को जल समर्पित करके व्रत को पूरा करें।

महिमा

‘अखुरथ संकष्टी चतुर्थी’ का व्रत जीवन में सौभाग्य की वृद्धि करता है। मान्यता है कि इस दिन एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी गणपति को तिल के लड्डू, दूर्वा अर्पित करने से ज्ञान और ऐश्वर्य, सुख, समृद्धि की प्राप्ति होती है।

कहते हैं, जो भक्त पौष माह की संकष्टी चतुर्थी पर व्रत रखकर ‘गणेश अथर्वशीर्ष’ का पाठ करते है और फिर चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं उन्हें दीर्घायु का वरदान मिलता है। संकष्टी चतुर्थी पर दिनभर व्रत रखा जाता है और रात के समय में चंद्र देव की पूजा करते हैं और उनको अर्घ्य अर्पित करके पारण करते है। इसके साथ ही यह व्रत पूर्ण होता है। इस व्रत में चंद्रमा की पूजा महत्वपूर्ण है, इसके बिना व्रत पूरा नहीं होता है।