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Published: Aug 10, 2021 01:50 PM IST

Ahilyabai Holkar Punyatithiपुण्यतिथि पर जानें बहादुर मराठा योद्धा रानी अहिल्याबाई होल्कर की अनकही कहानी

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
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अहिल्या बाई होल्कर (Queen Ahilyabai Holkar) का नाम हमारे देश के इतिहास के पन्नों में लिखा है। अहिल्या बाई को  हम सभी जानते है। इनका जन्म ( (31 May 1725 – 13 August 1795) को  जामखेड़, अहमदनगर, महाराष्ट्र (Maharshtra) के चोंडी गाँव (Chondi Village) में हुआ था। अहिल्या बाई होलकर की मृत्यु 13 अगस्त 1795 को हुई थी। यह उनकी पुण्यतिथि का 226 वां बरस है। उन्हें लोकमाता के नाम से भी जाना जाता था। वह एक महँ शासक मालवा की रानी थी। वह एक महान  बहादुर योद्धा और कुशल तीरंदाज का परिचय थीं। उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया और हाथी पर सवार होकर वीरता के साथ लड़ाई में भाग लिया।

मराठा साम्राज्य महारानी 

अहिल्याबाई मराठा साम्राज्य की  सिद्ध महारानी तथा इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खण्डेराव की धर्मपत्नी थीं। रानी अहिल्याबाई एक धार्मिक प्रवत्ति की महिला थी। इसलिए उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भी कई मंदिरों का निर्माण करवाया। साथ ही उन्होंने  घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मन्दिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन हेतु की। उनके द्वारा धार्मिक क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण कार्य किये गए। स्‍वतन्त्र भारत में अहिल्‍याबाई होल्‍कर का नाम बहुत ही सम्‍मान के साथ लिया जाता है।

 12 साल की उम्र में शादी 

अहिल्या की शादी 12 साल की उम्र में इन्दौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हार राव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हो गई थी। तीन वर्ष के बाद अहिल्या ने एक बेटी को जन्म दिया। 1754 में कुंभेर की लड़ाई में अहिल्याबाई के पति खांडेराव की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उनपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उन्होंने खुद को संभालते हुए शासन की सारी जिम्मेदारी अपने कंधो पर ले ली। कुछ समय के बाद मल्हार राव का भी निधन हो गया, जिसके बाद अहिल्याबाई को सामराज्य की गद्दी सौंपने की बात सामने आ गई। उन्हें गद्दी पर बैठाने के लिए सभी के मंजूरी मिल ली गई। साल 1766 में अहिल्याबाई ने सामराज्य की गद्दी संभाली और मालवा का शासन अपने हाथ में लिया।

निधन का कारण

अहिल्याबाई के शासनकाल में चलने वाले सिक्कों पर ‘शिवलिंग और नंदी’ अंकित रहते थे। उन्होंने कई मंदिरों का निर्माण और अन्य सुविधाओं के लिए जमकर पैसा खर्च किया, जिसकी वजह से राजकोष की स्थिति डगमगा गई थी। इसके बाद उन्हें राज्य की चिंता सताने लगी। साथ ही साथ प्रियजनों के वियोग के शोक भार को अहिल्याबाई संभाल नहीं सकीं और 13 अगस्त 1795 को उनका निधन हो गया था। अहिल्‍याबाई होल्‍कर को एक ऐसी महारानी के रूप में जाना जाता है, जिन्‍होंनें भारत के अलग अलग राज्‍यों में मानवता की भलाई के लिये अनेक कार्य किये थे। इसलिये भारत सरकार तथा विभिन्‍न राज्‍यों की सरकारों ने उनकी प्रतिमाएँ बनवायी हैं और उनके नाम से कई कल्‍याणकारी योजनाओं भी चलाया जा रहा है।