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Published: Jul 30, 2020 06:17 PM IST

Varalaxmi Vrat 2020वरलक्ष्मी व्रत की पूजन विधि और कथा

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

वरलक्ष्मी उत्सव देवी महालक्ष्मी का स्मरण करने के लिए विवाहित महिला द्वारा मनाया जाने वाला सबसे शुभ त्योहार है। इस वर्ष वरलक्ष्मी उत्सव 31 जुलाई 2020 को है। मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए पूजा या व्रत किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि देवी अपने भक्तों और उनके समर्पण से प्रसन्न होती हैं, तो वे उन्हें उन सभी चीजों का वरदान देती है जो भक्त चाहते हैं।

ऐसे करें व्रत और पूजा:

उठकर घर की स्वच्छता और स्नान आदि कर लें। फिर घर के पूजा स्थल पर चौक या रंगोली बनाएं। माता लक्ष्मी के विग्रह या प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर नए कपड़ों, जेवर और कुमकुम से सजाएं। इसके बाद एक पाटे पर गणेशजी और माता लक्ष्मी की मूर्ति को पूर्व दिशा में रखें। इनके पास ही कलश स्थापित करें, इस कलश में चावल भरकर रखें। गणपति और लक्ष्मी जी के साथ ही कलश पर भी चंदन से तिलक लगाएं। फिर दीप और धूप प्रज्जवलित करें। पूजा की थाली में एक नया लाल कपड़ा और चावल, खीर या सफेद मिठाई रखें। वरलक्ष्मी व्रत की कथा पढ़ें। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद महिलाओं में बांट दें।

व्रत की कथा:

व्रत की कथा वरलक्ष्मी व्रत के महत्व के बारे में एक बार भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताया था। मगध देश में कुंडी नाम का नगर हुआ करता था। यह नगर पूरी तरह सोने से निर्मित था। इस नगर में एक स्त्री चारूमती रहती थी, जो कि अपने परिवार की देखभाल के साथ ही एक आदर्श स्त्री का जीवन व्यतीत करती थी। देवी लक्ष्मी चारुमती से बहुत ही प्रसन्न रहती थीं। एक बार स्वप्न में देवी लक्ष्मी ने चारुमती को दर्शन दिए और उसे वरलक्ष्मी व्रत रखने के लिए कहा।

चारूमती ने इस स्वप्न के बारे में अपने आस-पास की महिलाओं को भी बताया। तब चारूमती के साथ ही उसके पड़ोस में रहनेवाली सभी स्त्रियों ने श्रावण पूर्णमासी से पहले पड़नेवाले शुक्रवार को देवी लक्ष्मी द्वारा बताई गई विधि से वरलक्ष्मी व्रत रखा और पूजा की। पूजन के पश्चात कलश की परिक्रमा करते ही उन सभी के शरीर विभिन्न स्वर्ण आभूषणों से सज गए। उनके घर भी स्वर्ण के बन गए तथा उनके घर पर गाय, घोड़े, हाथी आदि वाहन आ गए। इस पर व्रत करनेवाली सभी महिलाओं ने चारूमती की प्रशंसा की क्योंकि उसी के कारण सभी को व्रत रखने का सौभाग्य मिला, जिससे सभी को सुख समृद्धि की प्राप्ति हुई। कालांतर में सभी नगर वासियों को इसी व्रत को रखने से सामान समृद्धि की प्राप्ति हो गई।