<p>[caption id="attachment_205790" align="alignnone" width="1200"]<img class="size-full wp-image-205790" src="https://www.enavabharat.com/wp-content/uploads/2020/11/Lala-lajpat-rai.jpg" alt="" width="1200" height="675" /> लालाजी ने कानूनी शिक्षा पूरी करने के बाद जगरांव में वकालत शुरू कर दी। इसके बाद वे रोहतक और फिर हिसार में वकालत करने लगे। आर्य समाज के सक्रिय कार्यकर्ता होने के नाते उन्होंने दयानंद कॉलेज के लिए कोष इकट्ठा करने का काम भी किया। वे हिसार नगर निगम के सदस्य चुने गए और बाद में सचिव भी चुन लिए गए। स्वामी दयानंद सरस्वती के निधन के बाद लालाजी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एंग्लो वैदिक कॉलेज के विकास के प्रयास करने शुरू कर दिए।<br />[/caption][caption id="attachment_205792" align="alignnone" width="1200"]<img class="size-full wp-image-205792" src="https://www.enavabharat.com/wp-content/uploads/2020/11/lala-lajpat-rai-death-anniversary.jpg" alt="" width="1200" height="675" /> हिसार में लालाजी ने कांग्रेस की बैठकों में भी भाग लेना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। 1892 में वे लाहौर चले गए। 1897 और 1899 में जब देश के कई हिस्सों में अकाल पड़ा तो लालाजी राहत कार्यों में सबसे अग्रिम मोर्चे पर दिखाई दिए। जब अकाल पीड़ित लोग अपने घरों को छोड़कर लाहौर पहुंचे तो उनमें से बहुत से लोगों को लालाजी ने अपने घर में ठहराया। उन्होंने बच्चों के कल्याण के लिए भी कई काम किए। जब कांगड़ा में भूकंप ने जबरदस्त तबाही मचाई तो उस समय भी लालाजी राहत और बचाव कार्यों में सबसे आगे रहे।<br />[/caption][caption id="attachment_205796" align="alignnone" width="1200"]<img class="size-full wp-image-205796" src="https://www.enavabharat.com/wp-content/uploads/2020/11/lala-lajpat-rai-002.jpg" alt="" width="1200" height="675" /> अंग्रेजों ने जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो लालाजी ने सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और विपिनचन्द्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेजों के इस फैसले की जमकर मुखालफत की। उन्होंने देशभर में स्वदेशी वस्तुएं अपनाने के लिए अभियान चलाया। 3 मई 1907 को ब्रितानिया हुकूमत ने उन्हें रावलपिंडी में गिरफ्तार कर लिया। रिहा होने के बाद भी लालाजी आजादी के लिए लगातार संघर्ष करते रहे।<br />[/caption][caption id="attachment_205808" align="alignnone" width="1200"]<img class="size-full wp-image-205808" src="https://www.enavabharat.com/wp-content/uploads/2020/11/indian-home-rule-league-of-america.jpg" alt="" width="1200" height="675" /> लालाजी ने अमेरिका पहुंचकर वहां के न्यूयॉर्क शहर में अक्टूबर 1917 में' इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका' नाम से एक संगठन की स्थापना की। लालाजी परदेश में रहकर भी अपने देश और देशवासियों के उत्थान के लिए काम करते रहे। 20 फरवरी 1920 को जब वे भारत लौटे तो उस समय तक वे देशवासियों के लिए एक नायक बन चुके थे।<br />[/caption][caption id="attachment_205817" align="alignnone" width="1200"]<img class="size-full wp-image-205817" src="https://www.enavabharat.com/wp-content/uploads/2020/11/Gandhi.jpg" alt="" width="1200" height="675" /> लालाजी ने 1920 में कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में भाग लिया। वे गांधीजी द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ शुरू किए गए 'असहयोग आंदोलन' में कूद पड़े, जो सैद्धांतिक तौर पर 'रौलेट एक्ट' के विरोध में चलाया जा रहा था। लाला लाजपतराय के नेतृत्व में यह आंदोलन पंजाब में जंगल में आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे 'पंजाब का शेर' या 'पंजाब केसरी' जैसे नामों से पुकारे जाने लगे। लालाजी ने अपना सर्वोच्च बलिदान साइमन कमीशन के समय दिया।<br />[/caption][caption id="attachment_205818" align="alignnone" width="1200"]<img class="size-full wp-image-205818" src="https://www.enavabharat.com/wp-content/uploads/2020/11/lala-lajpat-rai-lathi-charge.jpg" alt="" width="1200" height="675" /> 3 फरवरी 1928 को कमीशन भारत पहुंचा जिसके विरोध में पूरे देश में आग भड़क उठी। लाहौर में 30 अक्टूबर 1928 को एक बड़ी घटना घटी, जब लाला लाजपतराय के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया। पुलिस ने लाला लाजपतराय की छाती पर निर्ममता से लाठियां बरसाईं। वे बुरी तरह घायल हो गए और अंतत: इस कारण 17 नवंबर 1928 को उनकी मौत हो गई।<br />[/caption][caption id="attachment_205819" align="alignnone" width="1200"]<img class="size-full wp-image-205819" src="https://www.enavabharat.com/wp-content/uploads/2020/11/shaheed-diwas.jpg" alt="" width="1200" height="675" /> लालाजी की मौत से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने की ठानी। इन जांबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक 1 महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफसर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।<br />[/caption][caption id="attachment_205820" align="alignnone" width="1200"]<img class="size-full wp-image-205820" src="https://www.enavabharat.com/wp-content/uploads/2020/11/lala-lajpat-rai-Aazadi.jpg" alt="" width="1200" height="675" /> लाला लाजपतराय आजादी के मतवाले ही नहीं, बल्कि एक महान समाज सुधारक और महान समाजसेवी भी थे। यही कारण था कि उनके लिए जितना सम्मान गांधीवादियों के दिल में था, उतना ही सम्मान उनके लिए भगतसिंह और चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के दिल में भी था।[/caption]</p>