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Published: Nov 07, 2020 01:45 PM IST

फोटोनोबेल पुरस्कार पाने वाले एशिया के पहले वैज्ञानिक थे सर सी. वी. रमन, कर्ज के चलते करना पड़ा था ये काम

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम


चन्द्रशेखर वेंकटरामन के पिता चन्द्रशेखर अय्यर एस.पी. जी. कॉलेज में भौतिकी के प्राध्यापक थे। आपकी माता पार्वती अम्मल एक सुसंस्कृत परिवार की महिला थीं। सन् 1892 ई में उनके पिता चन्द्रशेखर अय्यर विशाखापतनम के श्रीमती ए. वी.एन. कॉलेज में भौतिकी और गणित के प्राध्यापक थे, जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई। उस समय आपकी अवस्था चार वर्ष की थी। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा विशाखापत्तनम में ही हुई।
सीवी रमन ने 1907 में मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से फीजिक्स में मास्टर की डिग्री हासिल की थी। सीवी रमन विज्ञान के क्षेत्र में काम करना चाहते थे। लेकिन उनके भाई चाहते थे कि वो सिविल सर्विस का एग्जाम पास कर भारत सरकार में बड़े अधिकारी बने। सीवी रमन का परिवार कर्ज में डूबा था। उनके ऊपर परिवार का कर्ज उतारने की जिम्मेदारी थी।
 
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सिविल सर्विस की नौकरी में अच्छी खासी तनख्वाह थी। उस तनख्वाह से रमन अपने परिवार का कर्ज उतार सकते थे। विज्ञान के क्षेत्र में सीमित अवसर थे। परिवार की माली हालत देखकर वो इसमें अपना करियर नहीं बना पा रहे थे। अपने भाई के कहने पर रमन ने सिविल सर्विस की परीक्षा पास की और भारत सरकार के वित्त विभाग में सरकारी नौकरी कर ली।
1917 में सरकारी नौकरी से इस्‍तीफा देने के बाद वह कलकत्‍ता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हो गए। उसी दौरान उन्‍होंने कलकत्‍ता में इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्‍टिवेशन ऑफ साइंस (आईएसीएस) में अपना शोध कार्य किया।
यहीं पर 28 फरवरी, 1928 को उन्‍होंने रमन प्रभाव की खोज की, जिसके लिए उन्हें 28 फरवरी, 1928 को भौतिकी के क्षेत्र में ‘नोबेल पुरस्कार’ दिया गया। सी। वी। रमन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई वैज्ञानिक थे।
 यहीं पर 28 फरवरी, 1928 को उन्‍होंने रमन प्रभाव की खोज की, जिसके लिए उन्हें 28 फरवरी, 1928 को भौतिकी के क्षेत्र में ‘नोबेल पुरस्कार’ दिया गया। सी। वी। रमन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई वैज्ञानिक थे।
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सीवी रमन ने फीजिक्स में लाइट (light scattering) के क्षेत्र में काम किया था। उन्होंने वे प्रमाण प्रस्तुत किए जो प्रकाश की क्वांटम प्रकृति को साबित करते थे। उनके रिसर्च को’ ‘रमन इफेक्ट’ के नाम से जाना जाता है। 28 फरवरी 1928 को उन्होंने रमन इफेक्ट की खोज की थी। सीवी रमन के सम्मान में हर साल 28 फरवरी को विज्ञान दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
रमन इफेक्ट का इस्तेमाल आज भी वैज्ञानिक क्षेत्र में हो रहा है। जब भारत से अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान ने चांद पर पानी होने की घोषणा की तो इसके पीछे रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का ही हाथ था। फॉरेंसिक साइंस में रमन के खोज का इस्तेमाल आज भी किया जाता है। रमन के खोज की वजह से ये पता लगाना आसान हुआ कि कौन सी घटना कब और कैसे हुई थी।
परमाणु नाभिक और प्रोटोन की खोज करने वाले वैज्ञानिक अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने साल 1929 में रॉयल सोसाइटी में अपने अध्यक्षीय भाषण में रमन के स्पेक्ट्रोस्कोपी का उल्लेख किया था। इसके लिए रॉयल सोसाइटी ने रमन को सम्मानित किया और उन्हें नाइटहुड की उपाधि दी गई।
जब सी. वी. रमन से उनके प्रयोग की प्रेरणा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि 1921 में जब वे यूरोप जा रहे थे तो भूमध्य सागर के जल के नीले रंग से बहुत प्रभावित हुए और इसके बाद ही प्रकाश के प्रकीर्णन के बारे में उन्होंने खोज शुरू की।
साल 1932 में सी. वी. रमन और सूरी भगवंतम ने क्वांटम फोटोन स्पिन की खोज की। इस खोज से प्रकाश की क्वांटम प्रकृति के सिद्धांत को एक और प्रमाण मिला।1934 में सीवी रमन बेंगलुरु के IISC में अस्टिटेंट डायरेक्टर बने। आजादी के बाद उन्हें देश का पहला नेशनल प्रोफेसर चुना गया।1943 में उन्होंने बेंगलुरु में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापनी की। 21 नवंबर 1970 को उनका निधन हो गया।
भारत सरकार द्वारा सीवी रमन को विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिसमें नोबेल पुरस्कार (1930), भारत रत्न (1956), लेनिन शान्ति पुरस्कार (1957) शामिल है।