आज की खास खबर
Published: Jun 28, 2022 03:11 PM ISTआज की खास खबरद्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति प्रत्याशी घोषित होते ही उनके गांव में आजादी के 75 वर्ष बाद पहुंचेगी बिजली
हमारे नेता 5 खरब डॉलर की इकोनॉमी का सपना देख रहे हैं लेकिन देश के कितने ही गांवों में आज तक बिजली की रोशनी नहीं पहुंची है. इन्हीं में से एक है राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू का ओडिशा स्थित पैतृक गांव उबरबेड़ा, जहां के निवासी लालटेन युग में जी रहे हैं. एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार घोषित होते ही मुर्मू के गांव में आजादी के 75 वर्ष बाद अब बिजली पहुंचेगी. यदि ऐसी ही बात है तो क्या किसी गांव का अंधकार तभी दूर हो सकता है जब वहां से किसी बड़े नेता या वीवीआईपी का नाता जुड़ता नजर आए? यह कैसी लचर व्यवस्था है कि स्वाधीनता के अमृत महोत्सव पर भी देश के हजारों गांव अंधेरे में डूबे हुए हैं! यद्यपि द्रौपदी मुर्मू अब उस गांव में नहीं रहतीं लेकिन उनके दिवंगत भाई के बेटे समेत 20 परिवार वहां रहते हैं और लालटेन या चिमनी से काम चलाने पर मजबूर हैं.
आम तौर पर किसी गांव का थोड़ा सा विकास तब होता है जब वहां किसी वीआईपी का दौरा हो. ऐसे मौके पर आनन-फानन लीपापोती की जाती है. पानी की पाइपलाइन बिछाने से लेकर बिजली की रोशनी देने में प्रशासन लग जाता है लेकिन इससे पहले वह कितने ही दशकों तक कुंभकर्णी नींद में सोया रहता है और ग्रामीण बदनसीबी भरी जिंदगी गुजारने को विवश होते हैं. यदि मुर्मू राष्ट्रपति पद की कैंडिडेट नहीं होतीं तो उनका गांव और भी न जाने कितने दशकों तक बिजली को रोशनी से वंचित बना रहता. इसमें शक नहीं कि हमारे देश में प्रशासनिक मशीनरी मुंह देखकर काम करती है.
कुछ चीजें सिर्फ प्रतीकात्मक
पक्ष हो या विपक्ष, जनता को प्रभावित करने के लिए प्रतीकात्मक रवैया अपनाता है जिसे ‘टोकनिज्म’ कहा जा सकता है. राष्ट्रपति पुरुष हो या महिला, सवर्ण हो या दलित, उससे उन वर्गों को कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं पहुंचता. ग्रामीण क्षेत्र का राष्ट्रपति बनाने से गांवों का कायाकल्प नहीं हो जाता. रिटायर होने जा रहे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हों या पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन, उनके दलित होने से देश के दलितों की स्थिति में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं आया. प्रतिभा पाटिल के राष्ट्रपति बनने से देश में महिलाओं की स्थिति सुधरने जैसी कोई बात नहीं हुई. इसी तरह द्रौपदी मुर्मू के साथ महिला और आदिवासी जैसे विशेषण लगाने से इन वर्गों के हालात में कोई बड़ा बदलाव आएगा, इसकी कल्पना करना व्यर्थ है. राष्ट्रपति राष्ट्र का संवैधानिक प्रमुख होता है, जबकि कार्यकारी शक्तियों का वास्तविक इस्तेमाल प्रधानमंत्री करते हैं. राष्ट्रपति की किसी काम में प्रत्यक्ष पहल या दखल नहीं होती. किसी एक व्यक्ति की तरक्की से समूचा समाज या वर्ग प्रभावित नहीं होता. इंदिरा गांधी शक्तिशाली पीएम थीं लेकिन क्या इससे देश की तमाम महिलाओं को शक्तिसंपन्न होने का मौका मिला?
उतार-चढ़ाव वाली जिंदगी
समय के साथ हर व्यक्ति सुख-दुख झेलता है. द्रौपदी मुर्मू भी ‘कभी खुशी, कभी गम’ की अपवाद नहीं हैं. परिस्थितियों पर व्यक्ति का कोई वश नहीं है. 2009 से 2015 के बीच 6 वर्षों के दौरान द्रौपदी मुर्मू के पति, 2 बेटों, मां और भाई की मृत्यु हुई. उनके पति श्यामचरण मुर्मू हृदयविकार से चल बसे. एक बेटे का 2009 में और दूसरे का 3 वर्ष बाद सड़क दुर्घटना में निधन हो गया. इतना दुख झेलने के बाद अब वे राष्ट्रपति पद के करीब पहुंचती दिखाई दे रही हैं. 13 वर्ष पहले द्रौपदी मुर्मू ने माउंट आबू के ब्रम्हाकुमारी संस्थान से जुड़कर राजयोग का प्रशिक्षण लिया था. अब सचमुच का ‘राजयोग’ उनके द्वार पर दस्तक दे रहा है. वे शिक्षिका, सिंचाई विभाग की कनिष्ठ सहायक, 2 बार विधायक और ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं. उन्हें श्रेष्ठ विधायक का ‘नीलकंठ पुरस्कार’ भी मिल चुका है.