आज की खास खबर

Published: Jun 06, 2020 09:28 AM IST

आज की खास खबरविश्व साइकिल दिवस पर एटलस साइकिल कंपनी बंद

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

ऑटोमोबाइल व टूव्हीलर के बाद अब साइकिल भी लॉकडाउन का शिकार हुई है। यह कितनी बड़ी त्रासदी है कि भारत की सबसे बड़ी 69 वर्ष पुरानी एटलस कंपनी बंद हो गई। यह साइकिल देश-विदेश में जाना-माना ब्रांड थी। अमेरिका के बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर्स में भी एटलस की साइकिलें बिकती थीं। भारत में आजादी के पहले और फिर कुछ वर्ष बाद तक इंग्लैंड में बनी रैले साइकिल बिकती थी या फिलिप्स की साइकिल उपलब्ध थी। इसके बाद भारत में हिंद, हर्क्युलिस, ईस्टर्न स्टार, हीरो ब्रांड की साइकिलें बनने लगीं। 1951 में एटलस साइकिल बननी शुरू हुई। इसका प्रतीक चिन्ह था पीठ पर पृथ्वी (ग्लोब) को उठाए हुए शक्तिशाली आदमी। उस जमाने में किसी के पास खुद की साइकिल होना और रिस्टवॉच पहनना प्रतिष्ठा की बात समझी जाती थी। तब भारत में सबसे अधिक साइकिलें पुणे में हुआ करती थीं। वह साइकिलों का शहर कहलाता था। साइकिलों पर तब नगरपालिका का पीतल का बिल्ला लगा करता था। यह एक तरह का लाइसेंस था। रात में साइकिल चलाते समय उसमें लैंप लगाना जरूरी था। बैटरी सेल वाला लैम्प सामने लगाना पड़ता था। कुछ लोग डायनमो वाला लैंप लगाते थे। पिछले चक्के के घर्षण से डायनमो चलता था और जितनी तेजी से साइकिल चलाओ, उतनी तेज रोशनी देता था। तब साइकिल के टायर में 2 पैसे में हवा भराई जाती थी। कुछ लोग घर में हवा भरने का पंप रखते थे। साइकिल 2 आना घंटा (लगभग 15 पैसा) किराए से भी मिलती थी। दूधवाले अपनी साइकिल के सामने के हिस्से में डबल चिमटा लगवाया करते थे ताकि वजन से टूटे नहीं। साइकिल का कैरियर सामान ले जाने या किसी दोस्त को डबल सीट बिठाने के काम आता था। पहले साइकिल काली हुआ करती थी, फिर हर रंग में आने लगी। साइकिल चलाने से पैरों और फेफड़ों का व्यायाम हो जाता था। स्कूल, कालेज, आफिसों, सिनेमाघरों, स्टैंड पर साइकिलें ही नजर आती थीं। तब धनवान लोगों के पास कार तथा पुलिस अधिकारियों या गांव के पटेलों-जमींदारों के पास मोटरसाइकिल (फटफटी) हुआ करती थी। साइकिल की ओवरहॉलिंग करते समय उसके पुर्जों में तेल डाला जाता था, चेन ठीक की जाती थी, छर्रे बदले जाते थे, क्वार्टरपिन ठीक की जाती थी, स्पोक टाइट किए जाते थे। मोपेड और स्कूटर बाद में आए, पहले तो साइकिल ही शान की सवारी थी। स्कूल में स्लो साइकिलिंग प्रतियोगिता होती थी। लड़के साइकिल से रेस लगाते थे। समय के साथ साइकिल में नए फीचर्स जुड़ते चले गए जैसे कि हैंडल की बनावट बदली, वायर वाले ब्रेक लगाए गए। गीयर वाली तथा स्पोर्ट्स साइकिलें आ गईं। शौकीन लोग अब भी काफी महंगी साइकिलें खरीदते हैं। भारत की साइकिलें अफ्रीका, यूरोप में एक्सपोर्ट होती हैं। ये वहां के स्पेसिफिकेशन के हिसाब से बनाई जाती हैं।

अर्श से फर्श पर आई कंपनी
एटलस साइकिल कंपनी पिछले कई वर्षों से भारी आर्थिक संकट से गुजर रही थी। लॉकडाउन में उत्पादन ठप था। सैकड़ों कर्मियों को लेऑफ कर दिया गया था। हर वर्ष 40 लाख साइकिलें बनाने का रिकार्ड जिस एटलस कंपनी के नाम था, उसके संचालकों के पास फैक्टरी चलाने तो दूर, कच्चा माल खरीदने के लिए भी पैसे नहीं बचे। आखिर कंपनी बंद हो गई और इतिहास बनकर रह गई।