आज की खास खबर

Published: Apr 18, 2024 10:33 AM IST

आज की खास खबरछत्तीसगढ़ में वोटिंग से पहले नक्सलियों से मुठभेड़ में बड़ी सफलता

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के लिए छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में 19 अप्रैल, 26 अप्रैल और 7 मई 2024 को वोट पड़ने हैं। 44 दिनों तक चलने वाली इस लंबी मतदान प्रक्रिया का एक कारण छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे प्रदेशों में मौजूद माओवादी हिंसा भी है। नक्सली हिंसा से प्रभावित छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में इसीलिए तीन चरणों में मतदान हो रहा है, जहां पहले से ही सुरक्षाबलों को आशंका थी कि चुनाव के पहले और उसके दौरान जरूर माओवादी हिंसा के जरिये इस प्रक्रिया में खलल डालने की कोशिश करेंगे। सुरक्षाबलों को अपने ख़ुफिया तंत्र से पता चला कि माओवादी 19 अप्रैल को छत्तीसगढ़ की पहली लोकसभा सीट बस्तर में होने जा रहे मतदान के पहले किसी बड़ी घटना को अंजाम देने के लिए कांकेर जिले के थाना छोटेबेठिया के अंतर्गत आने वाले बिनागुंडा और कोरोनोर के मध्य होपाटोला के जंगलों में मीटिंग कर रहे हैं।  

आनन-फानन में बस्तर के आईजी सुंदरराजन और बीएसफ के डीआईजी आलोक कुमार सिंह ने एक्शन की योजना बनायी और 16 अप्रैल 2024 को दोपहर उस इलाके को चारों तरफ से घेर लिया, जहां माओवादी चुनाव में बाधा पहुंचाने की योजना बन रहे थे। इस योजना बैठक में 25 लाख रुपये के इनाम वाले माओवादी रावघाट कमेटी प्रभारी शंकर राव तथा उत्तर बस्तर डिवीजन प्रभारी ललिता मड़ावी भी मौजूद थीं। साथ ही प्रतापपुर एरिया कमेटी कमांडर राजीव सलाम भी इस बैठक में शामिल था। जैसे ही सुरक्षा बलों ने नक्सलियों को चारों तरफ से घेर लिया तो तुरंत फायरिंग शुरु हो गई, जो शाम तक चलती रही और अब तक की इस सबसे बड़ी माओवादी कार्रवाई में 29 चरमपंथी ढेर कर दिए गए।

सबसे बड़ी कार्रवाई

यह अभियान बीएसएफ और डि्ट्रिरक्ट रिजर्व गार्ड ने मिलकर संयुक्त रूप से चलाया था। हालांकि यह आजतक की सबसे बड़ी माओवादियों के विरूद्ध कार्रवाई है, लेकिन खुफिया सूत्रों को आशंका है कि अंतिम चरण के चुनावों के पहले तक संभव है माओवादी इस कार्रवाई का बदला लेने के लिए कोशिश करें। एक सूचना के मुताबिक जंगल में हिंसक कार्यवाई की योजना बना रहे सभी माओवादी मारे गये हैं, तो दूसरी सूचना के मुताबिक बैठक में हिस्सा ले रहे माओवादियों की संख्या मारे गये माओवादियों से कहीं ज्यादा थी और बड़े पैमाने पर वो लोग पहाड़ी क्षेत्र में एक छोटे बरसाती नाले का सहारा लेकर महाराष्ट्र की सीमा की ओर भाग गये हैं, इन भागने वालों की संख्या करीब दो-ढाई सौ के आसपास थी। लोकसभा चुनावों की शुरुआत के पहले सुरक्षा बलों को मिली यह बड़ी कामयाबी है। तो भी सुरक्षित चुनाव होने में कोई बाधा नहीं आती।

कमाई का जरिया बना

साढ़े पांच दशकों से चला आ रहा नक्सलाइट मूवमेंट, कई शातिर लोगों की कमाई का जरिया भी बन गया है। नक्सली प्रोटेक्शन मनी वसूल करते हैं। दशकों से गरीबों और आदिवासियों की आजादी और सुरक्षा के नाम पर हिंसा की जा रही है। 1967 में बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुए इस हिंसक नक्सली आंदोलन के चलते अब तक 2 लाख से ज्यादा आम लोग और सुरक्षाबल मारे जा चुके हैं। इस दौरान 50 हजार से ज्यादा माओवादी भी मारे गये हैं। माओवादी आंदोलन को जड़ से कुचलने या सफाया करने की विभिन्न सरकारें कोशिशें करती रहीं, लेकिन इस के विरुद्ध कोई निर्णायक सफलता नहीं मिली। नक्सली संविधान व कानून को नहीं मानते और दहशत व अराजकता फैलाने में लगे रहते हैं।