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Published: Nov 06, 2020 11:55 AM IST

नवभारत विशेषएमएसएमई को कैसे मिले आसान कर्ज

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

कोरोना संकट ने देश में सूक्ष्म लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों (एमएसएमई) के लिए विशेष रूप से कठिन चुनौतियां पैदा कर दी हैं, जो उनके सीमित वित्तीय संसाधनों से उपजी हैं. इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने देश के 6.34 करोड़ एमएसएमई की मदद के लिए कई उपायों की घोषणा की है, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है-वे 1.10 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं और देश के सकल घरेलू उत्पाद में 29 फीसदी का योगदान करते हैं. सबसे बड़ी पहल 45 लाख एमएसएमई को अतिरिक्त सुविधा की मंजूरी के लिए 40 अरब डॉलर की क्रेडिट गारंटी वाले प्रावधान की घोषणा थी, जो अभी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) से सुविधाओं का लाभ उठाते हैं.

हालांकि कर्ज लेने वाले एमएसएमई को ऐसी राहत प्रदान करना महत्वपूर्ण है, पर इससे केवल एक छोटे हिस्से को मदद मिलती है, जो कि बैंकों और एनबीएफसी से कर्ज लेने में सक्षम हैं. 2018 की आईएफसी-इंटेलकैप अध्ययन का अनुमान है कि भारतीय एमएसएमई का ऋण अंतराल (क्रेडिट गैप) 25.8 खरब रुपये (340 अरब डॉलर) है, जिसका मतलब है कि इस क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए एमएसएमई वित्तपोषण को तीव्र गति से बढ़ाने की आवश्यकता है. रोजगार सृजन के दृष्टिकोण से इस क्षेत्र के महत्व को देखते हुए एमएसएमई कर्ज को समर्थन देने वाले बुनियादी ढांचे में निवेश करना महत्वपूर्ण है, भविष्य में इसका बेहतर लाभ मिलने की संभावना है.

एमएसएमई ऋण देने में एक बड़ी चुनौती इस क्षेत्र की कंपनियों के क्रेडिट इतिहास और विश्वसनीय वित्तीय विवरणी की कमी के चलते क्रेडिट मूल्यांकन को पूरा करने की कठिनाइयों के कारण पैदा होती है. कर्ज देने वालों को अपने आकलन में काफी समय और श्रम देने की जरूरत होती है, जिसके कारण लेनदेन की लागत ज्यादा होती है. कुछ कर्जदाता उद्यमी की निजी संपत्ति बंधक रखने के आधार पर कर्ज देना पसंद करते हैं. यह एक ऐसी नीति है, जिसे उच्च क्षमता वाले एमएसएमई भी पूरा करने में अक्षम होते हैं.