संपादकीय

Published: Aug 21, 2021 12:02 PM IST

संपादकीयBJP का नया सिरदर्द जातिगत जनगणना की मांग तेज हुई

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

कभी ऐसा भी होता है कि राजनीतिक दांव उल्टा पड़ जाता है और यह कहावत सार्थक होती नजर आती है कि गए थे नमाज पढ़ने, रोजे गले पड़े! आमतौर पर सवर्णवादी राजनीति करने वाली बीजेपी ने देश के विभिन्न राज्यों में सर्वाधिक आबादी वाले ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदाय में अपना आधार मजबूत करने के लिए जो खटपट की थी, अब वही उस पर भारी पड़ रही है. संसद में मोदी सरकार द्वारा पेश 127वें संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद बीजेपी की हालत दो पाटों के बीच फंसने जैसी हो गई है. इस संविधान संशोधन की वजह से राज्यों को ओबीसी आरक्षण देने का अधिकार मिल गया है. अब ओबीसी समुदाय और उसके नेता जोर-शोर से जातिगत जनगणना की मांग करने लगे हैं.

यह मांग बीजेपी के सहयोगी दल तथा पार्टी के ही पिछड़े वर्ग के सांसद खुलेआम कर रहे हैं. जाति जनगणना की मांग यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्रप्रदेश आदि राज्यों से उठने लगी है. बीजेपी के आधा दर्जन ओबीसी सांसदों ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है. वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस व बीजद इस मांग के पक्ष में हैं. इसके अलावा जदयू व अपना दल भी जातिगणना की मांग कर रहे हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके लिए बिहार के सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल के साथ प्रधानमंत्री से मिलेंगे. ऐसा माना जा रहा है कि जाति आधारित जनगणना होने पर देश की राजनीति में मंडल आयोग जैसा भूचाल आ सकता है जैसा वीपी सिंह के पीएम रहते समय आया था.

महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात के पटेल-पाटीदार, बिहार में कुर्मी, कर्नाटक में लिंगायत ओबीसी माने जाते हैं. जाति जनगणना होने पर ओबीसी आबादी 60 प्रतिशत से भी ज्यादा होने का अनुमान है, जबकि अभी उपलब्ध आंकड़ों में ओबीसी की आबादी 20 प्रतिशत मानी जाती है. इस बड़ी तादाद के कारण राज्य ओबीसी सूची बना तो लेंगे लेकिन वह आरक्षण का लाभ पिछड़ों को नहीं दे सकेंगे.