नवभारत विशेष

Published: Oct 20, 2021 11:41 AM IST

संपादकीयकोयला संकट बना बड़ी चुनौती विद्युत आपूर्ति प्रभावित

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

कोयला और विद्युत आपूर्ति में कमी के मुद्दे को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच विवाद छिड़ा हुआ है. इस संकट की मुख्य वजह कोयला खान क्षेत्रों में भारी बारिश के चलते सप्लाई में बाधा आना, कोरोना महामारी कम होने के बाद से उद्योगों में बिजली की बढ़ती मांग है. वैश्विक कोयला आपूर्ति में भी कमी आई है. कोयला वितरण क्षेत्र भारी वित्तीय संकट से गुजर रहा है तथा लगभग 80 प्रतिशत कोयले की सप्लाई करने वाली कोल इंडिया लिमिटेड का उत्पादन घट गया है. कोल इंडिया लि. को बिजली निर्माण कंपनियों से बकाया पैसा नहीं मिल पा रहा है. 

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष मार्च तक 68,000 करोड़ रुपया मिलना बकाया था. बड़े कोयला उत्पादक राज्यों में कोयला खनन में कमी आई है. कोयला मंत्रालय द्वारा अगस्त माह में लोकसभा में पेश विवरण के अनुसार कोयले की मांग और आपूर्ति में अंतर बढ़ता ही चला जा रहा है. पहले कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) का लक्ष्य 2019-20 में 1 अरब टन उत्पादन हासिल करना था लेकिन अब यह लक्ष्य 2024 तक के लिए टाल दिया गया. कोल इंडिया लि. अपनी खानों से 60 करोड़ टन कोयले का खनन करता है जो कि बढ़ नहीं कर पा रहा है, इसलिए अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत प्रतिवर्ष विदेश से 20 करोड़ टन कोयले का आयात करता है.

चीन के बाद भारत ही विश्व का सबसे बड़ा कोयला आयातकर्ता है. कोयले की कमी के कारण बिजली संकट की नौबत आ गई है. राज्यों को प्राइवेट सेक्टर से महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है. देश में 75 प्रतिशत विद्युत उत्पादन कोयले पर चलने वाले बिजलीघरों से होता है. नवीकरणीय उर्जा का अभी इतना विकास नहीं हुआ कि बिजली की कमी से निपटा जा सके. इस स्थिति को देखते हुए गर्मी के मौसम में ही कोयला खनन बढ़ा देना चाहिए ताकि मानसून की वजह से होने वाली कमी से निपटा जा सके. बारिश में खदानों में पानी भर जाता है और खनन में बाधा आती है. आस्ट्रेलिया से खनन तकनीक में मदद लेनी चाहिए जो कि बड़ी मात्रा में कोयला उत्पादन करता है. कोयला उत्पादन कंपनियों के प्रबंधन में भी सक्षमता लाने की आवश्यकता है.