संपादकीय

Published: Mar 02, 2020 09:41 AM IST

संपादकीयट्रक ड्राइवरों से 48,000 करोड़ की वसूली रिश्वतखोरी पर कैसे अंकुश लगे

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

हम कितनी ही नैतिकता या सदाचार की बातें करें लेकिन देश में भ्रष्टाचार सिर चढ़कर बोल रहा है. स्व. गुलजारीलाल नंदा से लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे तक सभी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी लेकिन यह रोग खत्म होने की बजाय बढ़ता ही चला गया. कहा जाता है कि यह रिश्वत लेनेवाले के समान रिश्वत देनेवाला भी दोषी है लेकिन यदि लोग पैसा न दें तो उनका काम ही न बनें. भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ अकेले आवाज उठाने से क्या होनेवाला है. यह कितनी बड़ी विडंबना है कि ट्रक ड्राइवरों को हर साल 48,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम रिश्वत में देनी पड़ती है ताकि वे ट्रक लेकर आगे जा सकें. इस रिश्वतखोरी में नीचे से ऊपर तक सबको रकम जाती है. रिश्वतखोरी के इस रैकेट में स्टेट हाईवे अथारिटीज के लोग, ट्राफिक पुलिस, आरटीओ के लोग, टैक्स वसूल करनेवाली एजेंसियों के लोगों के अलावा स्थानीय गुंडे और हप्ता वसूली करनेवाले आपराधिक तत्व शामिल हैं. सिस्टम ऐसा है कि वेतन पाकर भी पुलिस, आरटीओ व हाईवे कर्मचारियों, अधिकारियों का पेट नहीं भरता. ऊपरी कमाई के बिना उनका काम ही नहीं चलता. ट्रांसपोर्ट कंपनियों के संचालक भी जानते हैं कि ट्रकों से माल की ढुलाई तभी संभव है जब रास्ते में जगह-जगह रकम दी जाती रहे. परमिट और सारे कागजात सही रहने पर भी पैसा वसूल किया जाता है. क्या सरकार इस बारे में नहीं जानती या जानबूझकर अनदेखी करती है? जब अन्य बड़े देशों में ऐसा नहीं होता तो ऐसा भ्रष्टाचार भारत के महामार्गों पर ही क्यों होता है? पूरी तरह कैशलेस लेन-देन अपने देश में संभव नहीं है. यदि ऐसा हो जाए तो भी रिश्वतखोर कोई नया तरीका निकाल लेंगे. क्या सरकार खासतौर पर परिवहन मंत्रालय इस समस्या का कोई हल खोज पाएगा?