संपादकीय

Published: Mar 21, 2022 02:44 PM IST

संपादकीय‘आप’ की सरकार तो बनी, पंजाब में सफलता कितनी मिल पाएगी

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

पंजाब में बनी ‘आप’ सरकार के सामने ढेर सारी चुनौतियां हैं. मुख्यमंत्री भगवंत मान के 10 मंत्रियों में से 8 पहली बार विधायक चुने गए हैं. इन मंत्रियों में आंख के डॉक्टर, कमीशन एजेंट और वकिल शामिल है. इस लिहाज से वे राजनीति में अनुभवहीन हैं. बीजेपी के गुजरात मॉडल के जवाब में ‘आप’ का दिल्ली मॉडल का प्रचार रंग लाया और पंजाब में कुल 117 में से 92 सीटों पर जीत हासिल कर ‘आप’ ने अपनी लोकप्रियता दिखा दी. यह बात आप नेता अरविंद केजरीवाल भी समझते हैं कि दिल्ली और पंजाब की सरकार चलाने में बहुत बड़ा अंतर है.

दिल्ली में सरप्लस बजट था. पंजाब पर कर्ज का बोझ लदा है. वहां की समस्याएं अलग हैं. वहां भी किसानों ने महाराष्ट्र के समान आत्महत्या की है. शिक्षा क्षेत्र बरबादी की ओर है. ड्रग्स का जाल फैला होने से परिवारों की दुर्दशा हो रही है. उड़ता पंजाब और कबीर सिंह जैसी फिल्मों में इस समस्या को उठाया गया था. अवसर न मिलने से युवाओं में हताशा है. वे किसी न किसी तरह कनाडा जाने की सोचते हैं और अवैध तरीके से विदेश ले जानेवाले गिरोहों के चंगुल में फंस जाते हैं. दिल्ली में सरकारी स्कूलों का दर्जा सुधारने, मोहल्ला क्लीनिक खोलने जैसे उपक्रम सफल हुए लेकिन पंजाब बड़ा राज्य हैं जहां ‘आप’ को अपने चुनावी वादे पूरे कर पाना आसान नहीं होगा.

पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, मुफ्त प्रवास के वादे कैसे लागू हो पाएंगे? पंजाब देश का सीमावर्ती राज्य है. यदि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात है तो क्या वहां के पुराने अधिकारी, ठेकेदार अपना रवैया छोड़ देंगे? केजरीवाल का पंजाब में कितना हस्तक्षेप रहेगा? वे दिल्ली से पार्टी की कमान संभालेंगे लेकिन भगवंत मान कबतक उनके इशारे पर चलेंगे? पंजाब की जनता ने बड़ी उम्मीद के साथ आम आदमी पार्टी को सत्ता सौंपी है.

शिरोमणि अकाली दल के परिवारवाद या कांग्रेस की अदूरदर्शिता ने ‘आप’ की राह आसान बना दी. पंजाब में दलित कभी खुद को दलित मानकर मतदान नहीं करते. इसलिए चन्नी को आगे लाना कांग्रेस के काम नहीं आया. अमरिंदर को भी जनता ने ठुकरा दिया. नवजोतसिंह सिद्धू बुरी तरह विफल रहे. ‘आप’ की सरकार में भले ही अनुभवहीन मंत्री हैं लेकिन ईमानदारी दिखाकर वे लोगों का दिल जीत सकते हैं.