संपादकीय

Published: Apr 12, 2023 03:03 PM IST

संपादकीयतमिलनाडू में टकराव, विधेयक पर मंजूरी क्यों टालते हैं राज्यपाल

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

कुछ राज्यपालों ने जानबूझकर राज्य सरकार के साथ असहयोग करने या उसके काम में अड़ंगा डालने का रवैया अपना रखा है. शायद वे सोचते हैं कि गैरबीजेपी राज्य सरकार को इस तरह हैरान-परेशान करने से केंद्र सरकार उनसे खुश रहेगी. राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख होते हैं जिन्हें विधानमंडल द्वारा पारित प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर 14 दिनों के भीतर मंजूरी दे देनी चाहिए. यदि विधेयक पर कोई आपत्ति हो तो राज्यपाल उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं दोबारा राज्यपाल के पास आने पर उन्हें अनिवार्य रूप से उसे मंजूरी देनी ही पड़ती है.

संविधान में यही प्रावधान है लेकिन न जाने क्यों कुछ राज्यपाल अपने पास बिलों को लंबी अवधि तक रोक लेते हैं और इस तरह अटकाने की कोई वजह भी नहीं बताते. हाल के वर्षों में बंगाल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच तीखा टकराव देखा गया. क्या राज्यपाल खुद ऐसा कर रहे हैं या केंद्र के उकसावे पर वे राज्य सरकार के लिए दिक्कतें पैदा कर रहे हैं? तमिलनाडु में ऑनलाइन जुए पर प्रतिबंध लगाने और ऑनलाइन गेम को रेगुलेट करनेवाले विधेयक को लेकर राज्य सरकार और राज्यपाल आर एन रवि के बीच जमकर टकराव की स्थिति बन गई थी. इस विधेयक को दोबारा राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया था लेकिन उन्होंने इसे अटकाए रखा और विधेयक पास होने के 131 दिनों बाद इसे मंजूरी दी.

मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के तीखे तेवरों के बाद राज्यपाल ने बिल को स्वीकृति दी. इससे पहले सिविल सेवा के प्रत्याशियो के एक समूह को संबोधित करते हुए राज्यपाल रवि ने कहा था कि बिलों को होल्ड करना बिलों को रिजेक्ट करने का एक अच्छा तरीका है. इस गतिरोध को देखते हुए तमिलनाड विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश कर केंद्र सरकार और राष्ट्रपति से आग्रह किया गया कि वे विधानसभा में पारित विधेयकों को निश्चित अवधि में मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश दें. मुख्यमंत्री स्टालिन द्वारा पेश इस प्रस्ताव को सदन ने पारित कर दिया था. ऑनलाइन गेमिंग पर बैन लगानेवाला विधेयक इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि इसमें लुट चुके तमिलनाडु के 41 लोगों ने अब तक आत्महत्या की है.

ऑनलाइन सट्टेबाजी के जाल में फंसकर लोग बरबाद हो रहे हैं. यद्यपि मीडिया प्लेटफार्म पर गेम खिलानेवाले कहते हैं कि सोच समझ कर खेलों इसकी लत पड़ सकती हैं और वित्तीय जोखिम की आशंका है फिर भी उनके लुभावने जाल में लोग फंस ही जाते हैं. लालच में गरीब व मजदूर भी आ जाते हैं युवा वर्ग भी कामधाम छोड़ कर ऑनलाइन सट्टे में उलझ जाते हैं और नुकसान उठाते है. किसी भी तरह का जुुआ खेलना कानूनी तौर पर अपराध है लेकिन फिर भी यह सब बेरोकटोक चल रहा है.