संपादकीय

Published: Jun 01, 2020 10:06 AM IST

संपादकीयप्रवासी मजदूरों पर कोर्ट की केंद्र व राज्यों को लताड़

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

प्रवासी मजदूरों की दयनीय दशा तथा उन्हें हो रही भारी परेशानियों को लेकर सेंटर आफ इंडिया ट्रेड यूनियंस की याचिका पर सुनवाई करते हुए बाम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति के.के. तातेड़ की खंडपीठ ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि उसने अब तक क्या किया है? महाराष्ट्र में रेलवे स्टेशनों व बस स्टैंड पर प्रवासी मजदूरों की भीड़ जमा होने की घटनाओं का संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से इस बारे में रिपोर्ट देने और यह बताने को कहा है कि इस बारे में उसने क्या कदम उठाए हैं। दोनों न्यायाधीशों ने प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा पर गहरी चिंता व्यक्त की। वर्तमान में देश के मुंबई, दिल्ली, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, केरल, मद्रास, मेघालय, पटना आदि 19 उच्च न्यायालयों ने प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा पर संबंधित राज्य सरकारों को फटकार लगाते हुए निर्देश दिए। सुप्रीम कोर्ट में भी एक जनहित याचिका दाखिल की गई जहां सुनवाई के दौरान सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालयों द्वारा समानांतर सरकार चलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र को काम नहीं करने दिया जा रहा है। मेहता ने हस्तक्षेप अर्जी डालनेवालों की बात सुने जाने का विरोध करते हुए कहा कि कोर्ट को राजनीतिक मंच नहीं बनने देना चाहिए। वास्तव में ऐसा कहकर सालीसीटर जनरल ने मर्यादा का उल्लंघन किया है जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। इन्हीं तुषार मेहता ने 31 मार्च को कोर्ट में कहा था कि एक भी मजदूर रास्ते पर नहीं है। बाम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल सिंह ने कहा कि प्रवासी मजदूरों का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इस पर खंडपीठ ने राज्य सरकार को 2 जून तक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता ने कहा कि जिन प्रवासी मजदूरों ने अपने घर जाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन व बसों की सुविधा के लिए आवेदन दिया था, उनके आवेदन की क्या स्थिति है, इसका पता ही नहीं चल रहा है। जब सरकार अपने कर्तव्यपालन में शिथिलता दिखा रही है तो न्यायालय को सक्रियता दिखानी ही पड़ती है। जब लॉकडाउन में लाखों मजदूरों का रोजगार खत्म हो गया, पैसे खत्म हो गए और रहने-खाने का ठिकाना नहीं रहा तो उन्होंने अपने गांव लौटना तय किया। उनकी दुर्दशा पर देर से सरकार जागी। ट्रेन व बसों की व्यवस्था की गई जो पर्याप्त नहीं थी। महाराष्ट्र में यूपी-बिहार के श्रमिकों की बहुतायत थी, कितने ही लोग भूख-प्यास और लंबी यात्रा की थकान से मर गए क्योंकि ट्रेन इधर-उधर भटकाती रही। देश के वरिष्ठ वकीलों ने भी सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित किया था।