संपादकीय

Published: Feb 04, 2023 03:12 PM IST

संपादकीय विपक्ष की अनसुनी किसलिए क्यों बाधित हो रहा संसद का सत्र

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

संसद के बजट सत्र में वित्तमंत्री द्वारा पेश बजट प्रावधानों पर चर्चा होना तो दूर, दोनों सदनों में अदानी मुद्दे पर हुए हंगामे की वजह से लगातार कामकाज बाधित हो रहा है. विपक्ष के रवैये को देखते हुए स्पीकर ओम बिड़ला बिफर गए. उन्होंने चेतावनी दी कि जो कुछ हो रहा है, वह मर्यादा के खिलाफ है. राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष का कार्यस्थगन प्रस्ताव ठुकराते हुए कहा कि मेरे फैसले की लगातार अवहेलना की जा रही है.

जिस तरह का माहौल चल रहा है, क्या उसमें बजट सत्र निर्धारित अवधि तक चल पाएगा? यह धारणा बलवती होती चली गई है कि केंद्र की मोदी सरकार ज्वलंत विषयों पर चर्चा टालना चाहती है. संसदीय प्रणाली में विपक्ष को बोलने का मौका मिलना चाहिए. बहस के बिना लोकतंत्र कैसा? यदि सदन में अनुमति न दी जाए अथवा बोलने के लिए केवल कुछ मिनटों का समय दिया जाए तो विपक्ष की नाराजगी बढ़ना स्वाभाविक है.

अध्यक्ष या सभापति से निष्पक्षता की उम्मीद की जाती है. संसद का पिछला शीतकालीन सत्र भी निर्धारित समय से 6 दिन पहले समाप्त कर दिया गया था. यह लगातार 8वां संसद सत्र था जो तयशुदा अवधि से पहले खत्म किया गया. उल्लेखनीय है कि 2020 का मानसून सत्र केवल 10 दिन चला था जो कि 17वीं लोकसभा का सबसे छोटा सत्र रहा. पिछले समय विपक्ष का आरोप यही रहा कि सरकार रॉफेल, पेगासस, चीन की घुसपैठ, महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर चर्चा टालना चाहती है. चीन का मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ लेकर टाला जाता है. पीएम ने दावा किया था कि न कोई घुसा है न किसी को घुसने दिया है.

तवांग में चीनी घुसपैठ पर बहस से बचने के लिए सरकार बहाने तलाशती नजर आई थी. इसे संवेदनशील बताया जाता है. आखिर सबको यह मालूम होना चाहिए कि एलएसी पर चीन क्या हरकतें कर रहा है और इसे रोकने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं. क्या संसद के कार्य दिवस इसलिए कम किए गए हैं कि महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा और उनके सीधे प्रसारण से बचा जाए? कार्य दिवसों में लगातार कमी आना संसदीय लोकतंत्र के लिए उपयुक्त नहीं है. ज्वलंत विषयों पर बहस न करना संसद की गरिमा को कम करने जैसा है. सरकार और विपक्ष के जिम्मेदार नेता आपस में चर्चा कर संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने का रास्ता निकाल सकते हैं. विपक्ष की अनसुनी और जनहित के मुद्दों पर बहस न होने देना हमारे लोकतंत्र के लिए सही नहीं कहा जा सकता.