निशानेबाज़

Published: Jun 30, 2023 02:57 PM IST

निशानेबाज़महंगाई दिखा रही अपना असर, 100 रुपए किलो बिक रहा टमाटर

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, टमाटर ने देखते ही देखते सेंचुरी मार दी. कहां तो वह 5 रुपए किलो पर उतर आया था और अब 80 से 100 रुपए किो पर चल रहा है. टमाटर पहले ही लाल होता है, अब उसका भाव देखकर ग्राहक गुस्से से लाल हो रहे हैं.’’ हमने कहा, ‘‘इसके पीछे अर्थशास्त्र का सिद्धांत है. जिस वस्तु की डिमांड ज्यादा और सप्लाई कम है, उसके भाव बढ़ जाते हैं. इसलिए टमाटर का महंगा होना स्वाभाविक है. आपको मालूम होना चाहिए कि टमाटर 1000 किलोमीटर का सफर पूरा कर आपके गांव या शहर में पहुंचता है. ट्रांसपोर्ट, दलाल थोक और चिल्लर विक्रेता तक होते हुए इसके दाम बढ़ते चले जाते हैं. जब टमाटर सस्ता होता है तो उसे कोई नहीं पूछता. हताश-निराश किसान उसे या तो पालतू पशुओं को खिला देते हैं या लागत नहीं निकलने पर विरोधस्वरूप सड़कों पर फेंक देते हैं. ज्यादा उपज हो तो किसानों को घाटा और कम पैदावार हो तो अधिक रेट देखकर ग्राहकों के माथे पर त्योरियां चढ़ जाती हैं. अप्रैलके महीने में बहुत ज्यादा टमाटर की पैदावार हो जाने से किसानों ने खुद इसकी फसल को नष्ट हो जाने दिया था. तब नाशिक के किसानों को 2 रुपए किलो में टमाटर बेचने की नौबत आई थी.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, महाराष्ट्र में अब जो टमाटर आ रहा है, उसकी सप्लाई आंध्रप्रदेश और कर्नाटक से हो रही है. यह टमाटर छत्तीसगढ़ के दुर्ग, राजनांदगांव से महाराष्ट्र के गोंदिया होते हुए नागपुर आता हैं और फिर पश्चिम महाराष्ट्र की ओर जाता है. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से भी टमाटर आता है. सब्जी का स्वाद बढ़ाने या सैलेड के लिए टमाटर जरूरी है. उसमें विटामिन ए और सी भी होता है. देसी लाल टमाटर ग्राहकों की पसंद है. टेबल टमाटर ऐसा होता है कि कटो तो रस नहीं. यह सैलेड केचप या सूप बनाने के काम आता है.’’ हमने कहा, ‘‘टमाटर 300 वर्ष पहले भारत में था ही नहीं. इसे पुर्तगाली अपने साथ लाए थे. जब अकबर से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने बगैर टमाटर काम चला लिया तो आप भी उसे तब तक भूल जाइए जब तक ये सस्ते नहीं होते. वैसे अपना स्टेटस दिखाने के लिए टमाटर खरीद कर पड़ोसियों का दिल जला सकते हैं. यदि विकल्प की बात करें तो ताजे टमाटर की बजाय टोमैटो केचप या इमली की चटनी से काम चलाइए.’’