निशानेबाज़

Published: Mar 23, 2022 01:35 PM IST

निशानेबाज़लंका में कंगाली का असर, कागज-स्याही नहीं तो सिखाओ प्रेम के ढाई अक्षर

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, रावण के राज में सोने की लंका थी लेकिन अब लंका में कंगाली का डंका बज गया है. वहां का सरकारी खजाना बिल्कुल खाली है. यह पड़ोसी देश इस वर्ष पूरी तरह दिवालिया हो सकता है.’’

हमने कहा, ‘‘इसका मतलब यह हुआ कि चीनी ड्रैगन ने लंका को अपना शिकार बनाया है. उसे कर्ज के जाल में फंसाकर उसके संसाधनों पर कब्जा कर लिया. चीन के चंगुल में फंसने का यही नतीजा होता है. अभी लंका पर कहर टूटा है, आगे चलकर पाकिस्तान भुगतेगा. नेपाल का हाल तो आप देख ही रहे हैं. केवल बांग्लादेश ही चीन के झांसे में नहीं आया.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, इन भुक्तभोगी देशों को अपना हाल लिखना चाहिए कि चीन किस तरह उन्हें जोंक की तरह चूस रहा है. ये देश चाहें तो अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के नाम खत लिखकर सचेत कर सकते हैं कि सुनो हमारी पुकार, चीन से रहो होशियार!’’

हमने कहा, ‘‘लिखने की तो बात ही मत कीजिए. लंका में कागज और स्याही खत्म होने से लाखों विद्यार्थियों का भविष्य खतरे में पड़ गया है. प्रश्नपत्र प्रिंट नहीं कराए जा सकते इसलिए परीक्षाएं रद्द कर दी गई हैं. लंका सरकार के पास प्रिंटिंग पेपर और इंक विदेश से आयात करने के लिए फॉरेन करेंसी नहीं है.’’

हमने कहा, ‘‘कोई बात नहीं, परीक्षाएं कंप्यूटर या लैपटॉप पर ऑनलाइन भी तो ली जा सकती हैं. उसमें प्रिंटेड क्वेश्चन पेपर की जरूरत ही नहीं पड़ती. जब कागज का आविष्कार नहीं हुआ था, तब भी पढ़ाई और परीक्षा होती थी. छात्रों की मौखिक परीक्षा या वॉयवा ले लिया जाए. पौराणिक काल में भारत के विद्यार्थी गुरुकुल में श्रुति और स्मृति के जरिए पढ़ाई करते थे. गुरु जो भी सिखाता था, वह ध्यान से सुनकर छात्र अपनी स्मृति में रख लेते थे.

सारी बात रटने के साथ समझ भी लेते थे. लिखने-पढ़ने के लिए कागज था ही नहीं. संत कबीर ने कहा था- ‘पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, भया न पंडित कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय.’ इसलिए कागज और स्याही के अभाव में विद्यार्थियों को प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ाकर पास कर दो.’’