निशानेबाज़

Published: May 29, 2020 10:27 AM IST

निशानेबाज़रेड जोन में रहने पर रेडलाइट एरिया समान शर्मिंदगी

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कोविड-19 के इस खतरनाक दौर में किसी व्यक्ति का रेड जोन में रहना उसके लिए कुछ ऐसी ही शर्मिंदगी की वजह बन जाता है, मानो वह किसी रेड लाइट एरिया में रहता है अथवा वहां से निकलकर बाहर आया है।’’ हमने कहा, ‘‘आपने भी खूब तुलना की। वैसे रेड कलर खरतें का ही चिन्ह होता है। लाल सिग्नल होने या लाल झंडी दिखाने पर ट्रेन रुक जाती है। लाल कपड़ा दिखाओ तो सांड़ भड़क उठता है और मारने दौड़ता है। नदी के घाट पर बांध पर भी लाल खतरे का निशान लगा दिया जाता है। वहां तक का पानी स्तर चढ़ जाए तो समझो बाढ़ आने का संकेत हो गया।’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमारा कहना था कि हर शहर में बदनाम बस्ती होती है जिसे रेडलाइड एरिया कहा जाता है। वहां वेश्यालय रहते हैं। वहां जाने वाले व्यक्ति को समाज अच्छी नजरों से नहीं देखता। सभी लोग ऐसे व्यक्ति से दूरी रखना चाहते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति कोरोना के प्रकोप की वजह से सील किए गए रेड जोन की होती है। ऐसे इलाके के लोगों को कोरोना फैलाने वाला मानकर उनसे दूरी बरती जाती है। उससे अछूत जैसा बर्ताव किया जाता है। सोचिए उसके दिल पर क्या बीतती होगी।’’ हमने कहा, ‘‘मुंबई का हाल तो आप जानते ही हैं। वहां की 40 फीसदी से ज्यादा गरीब आबादी झोपड़पट्टी या मलिन बस्तियों में रहती है। हर वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 20,000 से भी अधिक लोग रहने को मजबूर हैं। कहीं तो एक कमरे में 8 लोग जैसे तैसे रहते हैं। ऐसी जगह कोरोना तेजी से फैलता है क्योंकि वहां सोशल डिस्टेंसिंग संभव ही नहीं है। रेड जोन का हर बंदा संक्रमित नहीं होता लेकिन फिर भी उसे शक की नजर से देखा जाता है। पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जैसल रेड लाइट एरिया से लोग बीमारियां लेकर आते हैं वैसे ही रेड जोन का संक्रमित व्यक्ति यदि बाहर निकल गया तो अपने संपक में आने वाले कितने ही लोगों को कोरोना ग्रहस्त बना सकता है।’’ एक की वजह से कई लोगों का क्वारंटाइन में जाने की मजबूरी आ सकती है। सोशल डिस्टेंसिंग तो अब सामने आई है लेकिन 6 दशक से भी पहले आई फिल्म सीआईडी के एक गीत में चेतावनी देते हुए कहा गया था- ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां, जरा हट के जरा बचके, ये हे बंबई मेरी जां!’’