निशानेबाज़

Published: Aug 25, 2021 04:26 PM IST

निशानेबाज़गोविंदाओं की सूरत लटकी नहीं फूटेगी मटकी, महामारी में अटकी

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कृष्ण जन्माष्टमी निकट है. हम अभी से मटकी फोड़ने वाले गोविंदाओं का जोश बढ़ाते हुए जोर-शोर से कहना चाहते हैं- गो-गो-गोविंदा! हमारे उत्साह-उमंग से ओतप्रोत मन में भावनाएं उमड़ रही हैं कि ऊंचाई पर दही-मक्खन से भरी मटकी टांगी जाएगी और गोविंदाओं की टोली परस्पर प्रतिस्पर्धा करते हुए मटकी फोड़ने का साहसिक करतब दिखाएगी.’’

 हमने कहा, ‘‘आप कल्पनालोक में विचरण कर रहे हैं. द्वापर युग में बालकृष्ण और ग्वाल-बालों के लिए मटकी फोड़ना आसान रहा होगा लेकिन अब समय कुछ ऐसा बदल गया है कि कहना पड़ता है- वक्त ने किया क्या हसीं सितम, हम रहे ना हम, तुम रहे ना तुम! कोरोना को देखते हुए राज्य सरकार ने मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में दही हांडी का त्योहार मनाने से मना कर दिया है. 

इसके पहले सरकार ने एक दुर्घटना के बाद दही हांडी की ऊंचाई कम करने का आदेश दे दिया था, नहीं तो पहले मुंबई में जगह-जगह बहुत ऊंचाई पर हांडी बांधी जाती थी और बड़ी रकम का इनाम रखा जाता था. गोविंदाओं की टोली में कड़ी प्रतिस्पर्धा रहती थी कि बार-बार के प्रयास के बाद भी हौसला कायम रखकर कौन मटकी फोड़ेगा. इसके लिए मानव पिरामिड बनाया जाता था. एक के कंधे पर एक पैर रखते हुए सबसे कम वजन का लड़का ऊपर तक चढ़ता था और हांडी फोड़ता था. उस दौरान गीत गूंजता था- गोविंद आला रे आला, जरा मटकी संभाल ब्रजबाला.’’ 

पड़ोसी ने कहा, ‘‘सिर्फ मुंबई नहीं बल्कि नागपुर, पुणे, नाशिक, अमरावती, अकोला, गोंदिया हर जगह दही हांडी फोड़ने के कार्यक्रम चलते थे. जन्माष्टमी निकट आते ही गोविंदाओं की युवा टोली जोश में आ जाती थी. उनका कमाल देखने भारी भीड़ जमा होती थी. लोग ऊंची इमारतों के छज्जों में खड़े होकर इसे कौतुक से निहारते थे.’’ 

हमने कहा, ‘‘यह सब भूल जाइए. कोरोना संकट के बाद से हालत विकट हो गई है. रेवेन्यू देने वाले मदिरालय अनलॉक हैं. मंदिरों पर ताला, पुजारियों के घर का निकला दिवाला, फिर कैसे कहोगे- गोविंदा आला! भक्त घर में मनाएंगे जन्माष्टमी, नहीं हो पाएगी दही हांडी की सरगर्मी. बंदिशों से सारी हलचलें थमीं. प्रशासन है बड़ी हस्ती, नहीं करने देगा मस्ती!’’