मध्य प्रदेश

Published: Feb 18, 2023 10:56 AM IST

Project Cheetahदक्षिण अफ्रीका से भारत पहुंचे 12 चीते, कूनो नेशनल पार्क के लिए हुए रवाना, कुल 20 हुई संख्या

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
PTI Photo

नई दिल्ली/भोपाल. दक्षिण अफ्रीका से मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान (Kuno National Park) में पहुंचाने के लिए आज यानी शनिवार को 12 चीते (Cheetah) भारत पहुंच चुके हैं। आज भारतीय वायुसेना का विमान गैलेक्सी ग्लोबमास्टर C17 चीतों को लेकर आज 10 बजे के करीब ग्वालियर पहुंचा। वहीं उनकी जरुरी चिकत्सीय जांच करने के बाद यह सभी 12 चीते अब कूनो नेशनल पार्क लिए भी रवाना हो चुके हैं।

वहीं इन चीतों के पहुंचने पर कुनो में अब चीतों की संख्या बढ़कर 20 हो जाएगी। एक अध्ययन में कहा गया है कि इन चीतों से आसपास रहने वाले लोगों के लिए खतरा बहुत ही कम है। दक्षिण अफ्रीका से लाये जा रहे 12 चीतों के इस जत्थे में इस बार 7 नर और 5 मादा चीते हैं।

वहीं दोपहर 12 बजे कूनो राष्ट्रीय उद्यान पर उतरने के बाद, उन्हें आधे घंटे के बाद क्वारंटाइन (बाड़ों) में रखा जाएगा। केएनपी के निदेशक उत्तम शर्मा ने कहा कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी चीतों के लिए 10 बाड़े स्थापित किए हैं। हेलीकाप्टर से 12 चीतों को उतारने के बाद उन्हें पृथक-वास बाड़ों में लाया जायेगा। हेलीपेड से पृथक-वास बाड़ों की दूरी लगभग एक किलोमीटर है।  दक्षिण अफ्रीका ने भारत को ये चीते दान किए हैं।

जानकारी हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 सितंबर को अपने 72 वें जन्म दिवस पर नामीबिया से कुनो नेशनल पार्क में आठ चीतों को छोड़ा था। लेकिन उस समय दक्षिण अफ्रीकी सरकार से अनुमोदन के अभाव में इन 12 चीतों KNP नहीं लाया जा सका था। गौरतलब है कि, भारत को प्रत्येक चीता को स्थानांतरित करने से पहले वहां पकड़ने के लिए 3000 अमरीकी डालर का भुगतान करना पड़ता है। 

यह भी विदित हो कि भारतीय वन्यजीव कानूनों के अनुसार, जानवरों को आयात करने से पहले एक महीने का क्वारंटाइन अनिवार्य है और देश में आने के बाद उन्हें अगले 30 दिनों के लिए आइसोलेशन में रखा जाना आवश्यक है। पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने UPAसरकार के तहत 2009 में भारत में चीतों को फिर से पेश करने के उद्देश्य से ‘प्रोजेक्ट चीता’ की शुरुआत की थी। जानकारी हो कि, भारत में अंतिम चीते की मृत्यु वर्तमान छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में 1947 में हुई थी और इस प्रजाति को देश में 1952 में विलुप्त घोषित कर दिया गया था।