अकोला
Published: Sep 24, 2021 11:41 PM ISTCropsसोयाबीन की फसल पर करपा रोग, कपास की फसल पर बोंड इल्ली का संक्रमण
- दोनों फसलों का उत्पादन घटने की संभावना
अकोला. इस समय सोयाबीन की फसल पर करपा रोग का संक्रमण देखा जा रहा है. इसके पहले भी विविध कीटकों का संक्रमण सोयाबीन की फसल पर हुआ था लेकिन जिले के अनेक क्षेत्रों में करपा रोग का संक्रमण बड़े प्रमाण में फसलों पर देखा जा रहा है. किसानों से बात करने पर उन्होंने बताया कि कुछ समय पूर्व बदरीले मौसम के कारण विविध प्रकार के कीटकों से सोयाबीन की फसल प्रभावित हुई थी.
किसानों ने किसी तरह से छिड़काव कर के उन कीटकों के प्रभाव से फसल को मुक्त करने का प्रयास किया था. उन विविध कीटकों का संक्रमण अभी समाप्त भी नहीं हुआ था कि अब करपा रोग का संक्रमण फसलों पर देखा जा रहा है. किसानों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सोयाबीन की टहनियों पर तथा पत्तों पर करपा रोग का काफी असर हो रहा है.
इसी तरह करपा रोग के कारण सोयाबीन के पौधों की पत्तियां पीली पड़ रही हैं और अनेक क्षेत्रों में पत्तियां पीली होकर गल कर नीचे गिर रही हैं. इस रोग का संक्रमण सोयाबीन की फल्लियों पर भी बढ़ता हुआ देखा जा रहा है. अनेक क्षेत्रों में इस रोग के कारण सोयाबीन के पत्ते नीचे गिर रहे हैं. यह एक प्रकार का बुरशीजन्य रोग है.
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस रोग पर नियंत्रण करने के लिए टैबूकोण्याझोल तथा सल्फर, संयुक्त बुरशीनाशक जिसे हारु भी कहा जाता है इसका एक किलो प्रति हेक्टेयर के अनुसार छिड़काव किया जाना चाहिए. या 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या पायक्लोस्ट्राबिन और एपाक्सिकोण्याझोल जिसे पेरा कहा जाता है संयुक्त बुरशीनाशक 300 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या 0.6 मि.ली. प्रति लीटर पानी, चायना पॉवर पम्प रहने पर मात्रा तीन गुना बढ़ा देनी चाहिए, यह सलाह कृषि विशेषज्ञों ने दी है.
अनेक क्षेत्रों में कपास पर बोंड इल्ली का संक्रमण
जिले के अनेक क्षेत्रों में कपास की फसलों पर बोंड इल्ली तथा कहीं कहीं लाल्या रोग भी देखा जा रहा है. किसानों से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि इस वापसी की अत्यधिक बारिश के कारण इस तरह के रोग कपास की फसलों पर लग रहे हैं. कुछ क्षेत्रों में तो कपास के बोंड भी गल कर गिर जा रहे हैं. अनेक क्षेत्रों में किसानों द्वारा विविध रोग प्रतिबंधकों का छिडकाव कपास की फसलों पर किया जा रहा है. कहीं कहीं तो उपर से देखने पर फसल अच्छी लग रही है लेकिन अंदर से कपास के बोंड सड़ जा रहे हैं.
यह स्थिति भी कई जगह देखी जा रही है. एक समय था जब जिले का किसान पूरी तरह से कपास की फसल पर निर्भर रहता था. जिले के किसानों की पहली पसंद कपास रहा करती थी. अब परिस्थिति बदल गयी है. कपास के साथ साथ सोयाबीन की फसल की तरफ भी किसानों का रूझान बढ़ा है. अनेक किसानों का कहना है कि यदि विभिन्न रोगों से कपास की फसलों को मुक्ति मिलेगी तो तो ठीक है अन्यथा कपास का उत्पादन भी घट सकता है.