अकोला

Published: Jun 08, 2021 10:14 PM IST

अकोलामिट्टी की कौलारू छतें दुर्लभ, कौलारू घर मरम्मत करने का धंधा खतरे में

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

अकोट. पुराने कौलारू घर उपयोग के लिए दुर्लभ हो गए हैं. इसलिए घर-मरम्मत का धंधा खतरे में है. ग्रामीण मजदूरों को कहीं और काम खोजने का समय आ गया है. शहर की तरह अब ग्रामीण इलाकों में भी स्लैब वाले बंगले बढ़ रहे हैं. जिनका बजट कम रहता हैं वो लोग छप्पर की छतों से मकान बना रहे हैं. इन घरों के निर्माण में छत के रूप में प्लास्टिक, लोहे और सीमेंट की चादरों का उपयोग किया जाता है. नतीजतन सभी मौसमों में ठंडक प्रदान करने वाले मिट्टी की कौलारू छतें दुर्लभ हो गई हैं. जिससे प्री-मानसून घरों की मरम्मत के धंधे में ठंडक आ गई है. 

गांवों में मिट्टी के कौलारू के घर 

पहले तहसील के सभी गांवों में मिट्टी के कौलारू घर बनाए जाते थे. इस कौलारू घर में गर्मी के दिनों में भी घर ठंडा रहता था. लेकिन छत की विशेष संरचना के कारण बारिश से पहले घरों की छंटाई दुरुस्ती करनी पड़ती थी. नहीं तो बारिश का पानी छत के लकड़ी के रिप के सड़ने की संभावना थी. इसलिए बारिश से पहले पूरे पाइप कवेलू को निकालकर नीचे लिया जाता था. और खराब लकड़ी को बदल दिया जाता था और घरों की सफाई और मरम्मत करने के बाद फिर से कवेलू को छत पर रखां जाता था. 

पुराने घरों पर अभी भी कवेलू की छत 

ग्रामीण क्षेत्रों में पुराने घरों पर अभी भी कवेलू के छत कही कही दिखाई देते है. यह उन ग्रामीणों के लिए रोजगार का भी एक स्रोत था जो कवेलू के घर दुरुस्ती की कला से अवगत थे. जिसे हर साल एक निश्चित मौसम में करना पड़ता था. नतीजतन गांवों में कुछ घरेलू दुरुस्ती करने वालो समूहों का गठन किया गया. समूह में चार से पांच कार्यकर्ता शामिल थे. गांव की प्रत्येक वाडी में कम से कम एक ऐसा समूह था. इनका एक समूह प्रमुख भी रहता था.

समूह के प्रमुख को काम दिया कि वो सूरज उगने पर अपने काम को शुरुआत करते थे. सूर्योदय से सूर्यास्त तक कार्य चलता था. अगर घर बड़ा है, तो दो दिन लगते थे. इन कामगारों की दरें भी अन्य कामगारों की मजदूरी से अधिक थीं. आम तौर पर मई से जून के अंत तक चलने वाले इन कार्यों ने गांव में कई समूहों को रोजगार प्रदान किया. लेकिन हाल ही के दिनों में मैंगलोर और स्लैब के घर की ओर लोगो का रुझान दिखाई देता है.

पुराने कवेलू के घर अतीत की बात हो गयी है. कवेलू के बजाय लोग स्लैब, प्लास्टिक पत्रे, लोहे के पत्रे को पसंदी दे रहे हैं. स्लैब और मैंगलोर कला के अतिक्रमण के कारण घर मरम्मत के काम लगभग ठप हो गए हैं. ऐसे में तीन-चार महीने तक मजदूरों को रोजगार देने वाला धंधा पूरी तरह ठप हो गया है.