अकोला

Published: Oct 21, 2023 11:05 PM IST

Ravana Dahanआदिवासी समाज की भावनाएं आहत होती है, इसलिए रावण दहन के लिए अनुमति न दें; बिरसा उलगुलान सेना की मांग

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

अकोला. दशहरा का त्योहार 24 अक्टूबर को उत्साह के साथ मनाया जाएगा और इस अवसर पर कई स्थानों पर रावण दहन किया जाता है. रावण दहन कार्यक्रम आदिवासी समुदाय के सदस्यों की भावनाओं को आहत कर रहा है जिससे रावण दहन कार्यक्रम तहसील और जिलों में आयोजित नहीं किया जाना चाहिए. इस आशय की मांग का निवेदन बिरसा उलगुलान सेना की ओर से पातुर पुलिस स्टेशन के थानेदार किशोर शेलके को दिया गया है.

निवेदन में कहा गया है कि, दशहरा पर्व के दिन आदिवासी संस्कृति के प्रतीक, हमारे प्रेरणास्रोत महात्मा रावण का दहन किया जाता है. देश के साथ साथ जिले और पातुर तहसील में लंका पति रावण की मूर्तियां लगाकर उन्हें जलाया जाता है. यहां के कुछ लोगों का दावा है कि रावण दहन का कार्यक्रम उनकी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए किया जाता है. हालांकि रावण दहन से आदिवासी समुदाय की भावनाएं आहत हो रही हैं.

रावण एक आदिवासी राजा है और रावण दहन आदिवासी संस्कृति को जलाने का एक प्रयास है. रावण दहन की प्रथा आदिवासी समुदाय के खिलाफ खड़ी की गई एक बाधा है. इसलिए रावण दहन रोका जाना चाहिए, इस तरह के आयोजन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, यह मांग निवेदन में की गयी है.

निवेदन देते समय बिरसा उलगुलान सेना के अकोला जिलाध्यक्ष विलास धोंगडे के मार्गदर्शन में किशोर हजारे, महादेव जामकर, नीलेश करवते, रमेश कदम, वसंत शिंदे, अनिल डुकरे, सागर पांडे, देवा चवरे, संदीप इंगले, शंकर देवकर, रामचंद्र लोखंडे आदि सहित आदिवासी समाज के पदाधिकारी व कार्यकर्ता उपस्थित थे.