भंडारा

Published: Jun 06, 2021 01:23 AM IST

परेशानीखाद के बढ़ने किसान परेशान, खेती कार्य हुए महंगे

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
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भंडारा (का). इन दिनों रासायनिक खाद के दाम आसमान छू रहे हैं. इससे किसानों पर काफी दबाव है. एक अनुमान के मुताबिक मूल्य वृद्धि के बाद अब रासायनिक उर्वरकों पर प्रति हेक्टेयर ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे. भंडारा जिले में, धान, गेहूं, चना आदि सब्जियां बड़ी मात्रा में उगाई जाती हैं. फसल वृद्धि के लिए संयुक्त उर्वरकों को दिया जाता है. लेकिन अब रासायनिक उर्वरकों की कीमत आसमान छू गई है. प्रत्येक उर्वरक की कीमतों में औसतन 200 रुपये से 250 रुपये तक बढ़ोत्तरी हुई है. अनाज के लिए प्रति हेक्टेयर रासायनिक खाद के 8 बैग की आवश्यकता होती है. कीमतों में उछाल के बाद अब उन्हें प्रति हेक्टेयर 1,600 रुपये अधिक देने होंगे.

डीजल की कीमतों में बढ़ोत्तरी

पहले से वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहे किसानों को डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों में वृद्धि से बड़ी मुश्किल हो रही है. इससे किसानों में गुस्से की लहर पैदा हुई है. एक तरफ किसानों की उपज को सही दाम नहीं मिल रहा है. इसके अलावा किसानों को धान बेचने के लिए कई दिन हफ्तों का इंतजार करना पड़ता है.

उपज को नहीं मिल रहा संतोषजनक दाम

बिकने वाले कृषि उपज के लिए संतोषजनक दाम नहीं मिल रहा है. ऐसे में जो भी पैसा मिलता है वह नाकाफी है. प्राप्त धन कड़ी मेहनत की तुलना में बहुत मामूली है. इसके अलावा, डीजल और उर्वरक की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से किसान कर्ज के जाल में फंस सकता है. पूर्व में, किसान बड़ी मात्रा में जैविक खाद का उपयोग करते थे. लेकिन हाल ही में खाद प्राप्त करना मुश्किल हो गया है. सभी किसान रासायनिक खाद खरीदते हैं. अगर पर्याप्त मात्रा में उर्वरक नहीं दिया जाता है, तो खेत से अपेक्षित उपज प्राप्त नहीं होती है. जिससे किसान काफी तनाव में हैं.

खेती की लागत में वृद्धि

किसान ईंधन की कीमतों में वृद्धि की मार झेल रहे हैं. खेती की लागत भी बढ़ गई है. क्योंकि डीजल की कीमतें रोजाना बढ़ रही हैं. पहले एक ट्रैक्टर की दर 600 रुपये प्रति घंटा थी. लेकिन अब यह बढ़कर 800 रुपये प्रति घंटा हो गयी है. प्रति एकड़ खेत में हल चलाने से लेकर कीचड़ तक औसतन साढ़े तीन घंटे ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है. इस पर प्रति एकड़ 2,100 रुपये का खर्च आता था. लेकिन यह अब 2800 तक पहुंच गया है. किसान अब पारंपरिक तरीके से बैलों की मदद से खेती करने पर विचार कर रहे हैं.