चंद्रपुर

Published: Jun 23, 2020 10:38 PM IST

वृक्ष कटाईबबूल वन नष्ट होने के कगार पर, वृक्षों की हो रही तेजी से कटाई

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

शंकरपुर. चंद्रपुर जिले के चीमूर तहसील के ग्रामीण क्षेत्र में गांव के बाहर खेतों में बबूल का वन है. परंतु यह वन विकास के नाम पर नष्ट होने के कगार पर है. बबूल तीन प्रकार के होते हैं. जिनमें से कटेली काली बबूल विदर्भ में पायी जाती है. यह बबूल औषधियों के लिए काफी उपयुक्त है. ग्रामीण क्षेत्र में बबूल का वृक्ष कई स्थानों पर पाये जाते हैं. परंतु दिनों दिन आबादी बढ़ने के कारण विकास तथा निवास निर्माण करने का प्रश्न सामने आ रहा है. ग्रामीण क्षेत्र का विस्तार होने के कारण जगह का प्रश्न निर्माण हो रहा है. गांव का विस्तार करने की दृष्टि से गांव के बबूल वृक्षों की तेजी से कटाई की जा रही है. ग्रामीण क्षेत्र में बबूल के वृक्ष से डिंग निकाला जाता है. वृक्ष में लगने वाली शेंग दवाई में उपयुक्त होती है. गर्मी में किसान वर्ग बकरियों के लिए शेंग खाद्य के तौर पर उपयोग में लाते हैं. 

व्यापारी को अधिक दाम में बेंच रहे 
बरसात में वृक्ष पर पक्षी घोसले बनाते हैं. खास तौर बबूल वृक्ष पर कावला, बगूला आदि पक्षी बड़ी तादात में घोसलों का निर्माण करते हैं. परंतु इस समय ग्रामीण क्षेत्र में बबूल वृक्ष बड़ी तादात में काटे जाने से बरसात के दिनों में पक्षियों ने घोसलों का निर्माण इमली, बरगद, पीपल, करंजी तथा अन्य वृक्षों पर किया है. किसान वर्ग जंगली प्राणी से फसलों की सुरक्षा के लिए खेत में बबूल के टहनियों का इस्तेमाल किया करते थे. वृक्ष के पत्तों का इस्तेमाल दांतों की स्वच्छता के लिए किया जाता था. खेतों में मौजूद बबूल वृक्ष पर बैठे पक्षी खेतों में कीड़े खाने के लिए तैयार रहते थे. जिससे फसलों की सुरक्षा होती थी. परंतु बबूल की संख्या कम होने से खेतों में कीड़ों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. ग्रामीण क्षेत्र में शहरी व्यापारियों की ठेकेदारी चलने से बबूल वृक्ष बेभाव से किसानों से खरीदा जा रहा है. ठेकेदार किसानों से 800 से 1000 रूपये तक खरीद रहे हैं. उसके पश्चात ठेकेदार शहर के व्यापारी को अधिक दाम में बेंच रहे हैं. नए इमारत के निर्माण हेतु इस वृक्ष के लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है. जिससे बबूल वृक्ष को तहसील में अधिक काटा जाता है.