चंद्रपुर

Published: Jun 28, 2020 12:02 AM IST

चंद्रपुररोजगार पर सकारात्मक, पर्यावरण की भी चिंता, बंदर कोयला खदान पर ग्रामीणों में 2 मत प्रवाह

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
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शंकरपुर. केंद्र सरकार ने देश की 41 नई कोयला खदानों के नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इनमें चंद्रपुर जिले की चिमूर तहसील की बंदर कोयला खदान भी शामिल है. हालांकि सूची जारी करते ही जिले में इसका विरोध शुरू हो चुका है. पर्यावरण प्रेमी खदान का क्षेत्र ताड़ोबा से लगा होने के कारण वन्य प्राणियों पर इसका नकारात्मक असर होने की बात कह रहे हैं.

राज्य के पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे भी इसका विरोध कर चुके हैं. लेकिन कोयला खदान क्षेत्र में आने वाले जिन गांवों की ग्रामसभाओं से शुरू वर्ष का प्रस्ताव मांगा गया है, वहां 2 मत प्रवाह दिखाई दे रहे हैं. कुछ ग्रामीण कोयला खदान से रोजगार के अवसर बढ़ने और परिसर का विकास होने की बात कह रहे हैं. वहीं कुछ ग्रामीण पर्यावरण के कारणों को काफी महत्वपूर्ण मानते हैं.

केंद्र ने मांगा प्रस्ताव
प्रस्तावित बंदर कोयला खदान परिसर में कोयले का भंडार होने की बात सामने आई है. इस घने वनक्षेत्र में कई वर्षों से मुरपार भूमिगत कोयला खदान शुरू है. सर्वे में परिसर के बंदर (शिवापुर), शेडेगांव, मजरा(बे.), अमरपुरी (भांसुली), गदगांव आदि क्षेत्रों में बड़े पैमाने में कोयला होने की जानकारी है. केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय ने संबंधित गांवों की ग्रामसभाओं का शुरू वर्ष का प्रस्ताव मांगा है. चिमूर तहसील में रोजगार के सीमित अवसर है.

जिसके कारण लोग दूसरे जिलों तथा तहसीलों में जाकर रोजगार कर रहे हैं. यहां मुरपार में भूमिगत कोयला खदान शुरू है. नए प्रकल्प के लिए 1170.16 हेक्टेयर जमीन संपादित की जाएगी. प्रकल्प उद्योग, बाजार, रोजगार निर्मिति की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. चिमूर परिसर राष्ट्रीय महामार्ग में आने से विकास तेजी से होगा. कोयले के परिवहन के लिए चिमूर तक रेलवे शुरू करने की भी संभावना है. बाधित गांवों के विकास के लिए विशेष निधि उपलब्ध हो सकती है. इस तरह की चर्चा ग्रामीणों में है.

पर्यावरण प्रेमियों का विरोध
बंदर कोयला खदान का पर्यावरण प्रेमी विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि ताड़ोबा व्याघ्र प्रकल्प के वन्यप्राणी परिसर में भ्रमण करते हैं. इस प्रकल्प से वनक्षेत्र नष्ट होगा. जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ेगा. भद्रावती तहसील के कर्नाटका एम्टा जैसी परिस्थिति निर्माण होगी. खेती की उपजाऊ क्षमता कम होगी. इस प्रकल्प के बारे में जिले के पालकमंत्री, क्षेत्र के सांसद, विधायक आदि की भूमिका भी निर्णायक साबित होगी. भविष्य में प्रकल्प की मंजूरी ग्रामसभाओं की मंजूरी पर ही निर्भर है.