गोंदिया

Published: Dec 07, 2021 11:37 PM IST

Elephant 3 सौ साल बाद महाराष्ट्र पहुंचा हाथियों का दल, पहले ओडिसा से आया था

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
प्रतीकात्मक तस्वीर

गोंदिया. नौ साल पहले 2013 में ओडिसा से आए चंदा हथिनी के दल के हाथी अब महाराष्ट्र के जंगल को आबाद करेंगे.  इस दल ने करीब 2 महीने पहले छत्तीसगढ से महाराष्ट्र में प्रवेश किया और उसके बाद गढचिरोली जिले के वन विभाग के अफसरों ने 3 सौ साल बाद महाराष्ट्र में पहुंचे करीब 22 हाथियों के दल को वहीं रोकने के लिए 1.40 करोड रु. की कार्य योजना बनाई है और जैसी की जानकारी मिली है महाराष्ट्र सरकार और अफसर इन  हाथियों के आने से उत्साहित हैं. 

महासमुंद में हुआ था नामकरण 

छत्तीसगढ के सेवानिवृत्त सीसीएफ के.के. बिसेन के अनुसार 22 हाथियों के इस दल में नन्हें हाथी अल्फा, बीटा व गामा भी शामिल है. हथिनी चंदा का नामकरण महासमुंद में हुआ था जो बिसेन के द्वारा सन 2014 में किया गया था उस समय वे सरगुजा में सीसीएफ थे. उनके अनुसार एक साथ आए 12 हाथियों को पहचानने में परेशानी होती थी. इसलिए महासमुंद के सिरपुर स्थित चंदादेवी मंदिर के नाम पर दल की प्रमुख हथिनी का नाम चंदा रखा गया और उसे कॉलर आयडी भी पहनाई गई. 

छत्तीसगढ में हैं अभी 300 हाथी

छत्तीसगढ में अभी 13 हाथियों का दल मौजूद है इनकी संख्या करीब 300 सौ है. इनमें रोहासी दल, सहज दल, अपना दल, गुरुघासीदास दल, बंकी दल, तपकराई दल, अशोक दल, कर्मा दल, गौतनी दल, शांत दल, धरमजयगढ दल, कोरबा दल व खुदंमुरा दल का समावेश है. करीब 2 महीने पहले हाथियों के इस चंदा दल ने बालोद से राजनांदगांव होते महाराष्ट्र में प्रवेश किया. अब इसके दोबारा छत्तीसगढ लौटने की संभावनाएं कम है. 

महाराष्ट्र सरकार का दृष्टिकोण है पर्यटन 

महाराष्ट्र सरकार हाथियों को पर्यटन की दृष्टि से देख रही है और किसी भी कीमत पर यहीं रोकने की कार्य योजना बनाई है. हाथियों का यह  दल छत्तीसगढ में बेहतर रहवास की तलाश में आया था लेकिन गांव में हाथियों को भगाने फटाखे चलाने और हांका दल द्वारा हांकने के कारण उन्हें संभवत: परेशानी हुई और इसी कारण पहले राम – बलराम नामक हाथी मध्यप्रदेश चले गए. महाराष्ट्र के गढचिरोली में बांस व पर्याप्त चारा भी है. इसी कारण हाथी यहां अपने का सुरक्षित मान रहे हैं.