जलगांव

Published: Mar 30, 2024 06:39 PM IST

Raver Lok Sabha Seatरावेर लोकसभा चुनाव: खडसे और महाजन के बीच अस्तित्व की लड़ाई, जानें सीट का गुणा गणित

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
रावेर लोकसभा सीट

नवभारत डिजिटल डेस्क: रावेर लोकसभा क्षेत्र (Raver Lok Sabha Seat) एकनाथ खडसे (Eknath Khadse) के गढ़ के रूप में जाना जाता है। अब एकनाथ खडसे की बहू रक्षा खडसे (Raksha Khadse) रावेर से सांसद हैं। लेकिन एकनाथ खडसे बीजेपी (BJP) के साथ नहीं रहे हैं। उन्होंने बीजेपी छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस (Congress) पार्टी में शामिल होने का फैसला किया। इसके बाद जब एनसीपी (NCP) पार्टी में फूट पड़ी तो उन्होंने शरद पवार के साथ रहने का फैसला किया। इस संसदीय क्षेत्र में ऐसी चर्चा है कि अब उनका दबदबा उतना नहीं रहा। फिर भी वह एक पुराने नेता के तौर पर अहम हैं। ऐसी चर्चाएं थीं कि इस साल रावेर की लड़ाई खडसे बनाम खडसे जैसी होगी। हालांकि एकनाथ खडसे ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) से दूर रहने की घोषणा की है।

25 सालों से BJP का दबदबा

रावेर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तर महाराष्ट्र में है। इस लोकसभा क्षेत्र में मुख्य रूप से जलगांव जिले के 5 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। बुलढाणा जिले में केवल एक विधानसभा क्षेत्र है जिसका नाम मलकापुर है। रावेर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र 2008 में बनाया गया था। संसदीय क्षेत्र बनने के बाद से यानी 2009 से यहां सिर्फ बीजेपी सांसद ही रह रहे हैं। 2009 में हरिभाऊ जावले यहां से सांसद बने, जबकि 2014 और 2019 में एकनाथ खडसे की बहू रक्षा खडसे यहां से सांसद बनीं। इससे पहले जहां यह जलगांव संसदीय क्षेत्र में शामिल था, वहीं शुरुआत में यहां कांग्रेस का दबदबा भी देखने को मिला है। लेकिन 1998 में उल्हास पाटिल के बाद से कांग्रेस यहां जीत नहीं पाई है। उस हिसाब से देखा जाए तो पिछले 25 सालों में इस सीट पर बीजेपी का ही दबदबा देखने को मिला है। उस वक्त खडसे की ताकत भी बीजेपी के पीछे थी।

बीजेपी (File Photo)

यादव महाजन ने लगाई थी हैट्रिक

रावेर से पहले यह निर्वाचन क्षेत्र जलगांव लोकसभा का हिस्सा था। 1952 में जलगांव लोकसभा क्षेत्र से पहला लोकसभा चुनाव कांग्रेस के हरि पाटस्कर ने जीता। इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी यादव महाजन ने 1980, 1984, 1989 में लगातार जीत की हैट्रिक बनाई। उनके बाद बीजेपी के गुणवंतराव सरोदे 1991 और 1996 में लगातार दो बार जीते थे। दूसरे शब्दों में कहें तो रावेर से पहले जलगांव लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने 8 बार जीत हासिल की थी। जबकि 1977 में जनता पार्टी के यशवंत बोरोले के अलावा बीजेपी ने 4 बार जीत हासिल की। दूसरे लोकसभा चुनाव में नौशेर भरूचा ने जलगांव लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की।

रक्षा खडसे को बनाया उम्मीदवार

रावेर लोकसभा क्षेत्र बनने के बाद से यहां बीजेपी का दबदबा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में रक्षा खडसे को फिर से बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया। उनके खिलाफ कांग्रेस ने उल्हास पाटिल को मैदान में उतारा था। एकनाथ खडसे के भारी प्रभाव और बीजेपी की प्लानिंग के चलते रक्षा खडसे 2014 की तरह इस बार भी यहां से जीत गईं। इस चुनाव में रक्षा खडसे ने उल्हास पाटिल को तीन लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। इसके बाद बीजेपी ने एक बार फिर रक्षा खडसे को 2024 के लिए रावेर से उम्मीदवार बनाया है। देखने वाली बात ये होगी कि क्या रक्षा खडसे इस बार जीत हासिल कर रावेर में जीत की हैट्रिक लगा पाएंगी या नहीं।

रक्षा खडसे (PIC credit: Social media)

रक्षा खडसे को मिल सकती है कड़ी चुनौती

इस बार रक्षा खडसे के लिए चुनाव जीतना आसान नहीं होगा। वजह ये है कि एकनाथ खडसे अब बीजेपी के साथ नहीं हैं। उन्होंने बीजेपी छोड़ दी है। पिछले चार सालों में राज्य की तरह जलगांव जिले की राजनीति में भी कई भूचाल आए हैं। खडसे विधानसभा चुनाव में हार गये थे। वहीं, खडसे की बेटी रोहिणी खडसे बालेकिल्ला में विधानसभा चुनाव हार गई थीं। उस हार से भी खडसे की नाराजगी बढ़ गई। इसके बाद खडसे पर लगे आरोपों और उनसे पूछताछ के चलते उनकी कड़वाहट और भी बढ़ गई। पार्टी के खिलाफ उनकी नाराजगी बढ़ती गई और आखिरकार एकनाथ खडसे ने बीजेपी छोड़ने का फैसला किया। वह शरद पवार की पार्टी एनसीपी में शामिल हो गए। एनसीपी में विभाजन के बाद भी वह शरद पवार के साथ बने हुए हैं। हालाँकि, उनकी बहू और बीजेपी सांसद रक्षा खडसे बीजेपी में ही रहीं। इससे सत्ता पक्ष और विपक्ष में एक ही परिवार के दो सदस्यों के होने की छवि बनी।

इन उम्मीदवारों के नामों की चर्चा

रावेर लोकसभा क्षेत्र में रक्षा खडसे के साथ-साथ गिरीश महाजन का भी भाजपा से अच्छा जमावड़ा है। इसलिए गिरीश महाजन भी बीजेपी के लिए अहम नेता हैं। चर्चा थी कि बीजेपी इस सीट से रक्षा खडसे को टिकट देगी। उनकी जगह गिरीश महाजन, वकील उज्वल निकम के नाम पर भी चर्चा हुई। बीजेपी ने उल्लास पाटिल, जो कांग्रेस के नेता थे उनको पार्टी में शामिल कर लिया। उसके बाद उनकी बेटी केतकी पाटिल के नाम की चर्चा बीजेपी की तरफ से उम्मीदरवारी के लिए चल रही थी।

गिरीश महाजन, उज्वल निकम, रक्षा खडसे (PIC Credit: Social media)

महायुति ने BJP को दी सीट

महायुति ने यह सीट बीजेपी के लिए छोड़ दी और अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया। वहीं, महाविकास अघाड़ी की ओर से दूसरा उम्मीदवार कौन होगा यह भी साफ नहीं है। महाविकास अघाड़ी की ओर से एकनाथ खडसे के नाम पर चर्चा की गई। लेकिन उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी स्थिति स्पष्ट की और कहा कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। महाविकास अघाड़ी से उम्मीदवारी के लिए उनकी बेटी रोहिणी खडसे के नाम की भी चर्चा थी। उम्मीदवारी के लिए ठाकरे गुट के विष्णु बंगले, सुनील बंगले के साथ शरद पवार की पार्टी एनसीपी के रवींद्र पाटिल से भी चर्चा की गई है। अब देखना होगा कि महाविकास अघाड़ी से रावेर का नामांकन किसे मिलता है।

चुनाव में ये मुद्दे रहेंगे चर्चा में

केला इस क्षेत्र की प्रमुख फसल है। इसलिए, केले की कीमत, केले के फसल बीमा का मुद्दा और केला प्रसंस्करण उद्योगों की उपेक्षा अभियान में महत्वपूर्ण मुद्दे हो सकते हैं। चूंकि निर्वाचन क्षेत्र में अधिकांश मतदाता ग्रामीण क्षेत्रों से हैं, इसलिए कृषि से संबंधित मुद्दे चुनाव में प्रबल रहने की संभावना है। वहीं इस विधानसभा क्षेत्र में लेवा पाटिल समुदाय की राय भी अहम है। इस सोसायटी को एकनाथ खडसे का समर्थन प्राप्त था। लेकिन अब देखने में आ रहा है कि यह समाज बिखरा हुआ है।

खडसे और महाजन के बीच अस्तित्व बचाने लड़ाई

गिरीश महाजन, एकनाथ खडसे, रक्षा खडसे (PIC Credit: Social media)

कुल मिलाकर देखा गया है कि इस विधानसभा क्षेत्र में एकनाथ खडसे का प्रभाव है। पिछली बार वह बीजेपी के साथ थे लेकिन अब उसके खिलाफ हैं। चूंकि उम्मीदवार बहू है, तो क्या यह विरोध वोटों में दिखेगा? ऐसा सवाल उठता है। वहीं, खडसे भले ही इसके खिलाफ हैं, लेकिन लगता है कि उनके राजनीतिक दुश्मन गिरीश महाजन ने इस सीट पर कब्जा जमा लिया है। इसलिए भले ही ये दोनों सीधे तौर पर लोकसभा के मैदान में नहीं हैं, लेकिन ये साफ है कि ये लड़ाई खडसे और महाजन के बीच भी अस्तित्व बचाने की होगी।