महाराष्ट्र

Published: Dec 06, 2021 08:16 PM IST

SBC Reservationमहाराष्ट्र: सरकारी नौकरियों में SBC के लिए आरक्षण को उच्च न्यायालय में चुनौती

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

मुंबई:  विशेष पिछड़ा वर्ग (SBC) के उम्मीदवारों के लिए महाराष्ट्र लोक सेवा (MPSC) में 1994 में प्रदान किए गए दो प्रतिशत आरक्षण (Reservation) को चुनौती देते हुए बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) में एक याचिका दायर की गई है।

मराठा आरक्षण को चुनौती दे चुके संगठन ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ की इस याचिका में दावा किया गया है कि महाराष्ट्र सरकार की नौकरियों में एसबीसी के लिए दो प्रतिशत कोटा असंवैधानिक है। याचिका को सोमवार को उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन समय की कमी के कारण इस पर विचार नहीं किया जा सका।

अधिवक्ता संजीत शुक्ला के माध्यम से दायर याचिका में राज्य सरकार के 1994 के उस फैसले को चुनौती दी गई, जिसमें एसबीसी की श्रेणी बनाई गई थी और सरकारी नौकरियों में उनके लिए दो आरक्षण का प्रावधान किया गया था। याचिकाकर्ता ने कहा कि उक्त प्रावधान विभिन्न विशेष या अनुसूचित श्रेणियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का कुल प्रतिशत 52 प्रतिशत तक ले जाता है, जो उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित सीमा का उल्लंघन है।

संगठन ने उच्चतम न्यायालय के उस फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि नौकरियों में आरक्षण 50 प्रतिशत की ऊपरी सीमा से अधिक नहीं होनी चाहिए जब तक कि असाधारण परिस्थितियां नहीं हों। याचिका में कहा गया है कि आठ दिसंबर 1994 का राज्य मंत्रिमंडल का एसबीसी श्रेणी को अधिसूचित करना और उन्हें आरक्षण देने का फैसला एक राजनीतिक कदम था क्योंकि संबंधित अधिसूचना में कभी यह दावा नहीं किया गया कि विशेष पिछड़ा वर्ग से कोई असाधारण परिस्थिति जुड़ी हुई है। इसके अलावा, जब राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में सीटों की बात आती है तो एसबीसी को सामान्य श्रेणी के समान माना जाता है और वे आरक्षण के लिए तभी पात्र होते हैं जब अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी की सीटें खाली रहती हैं। 

याचिका में कहा गया है कि महाराष्ट्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार शिक्षा में 50 प्रतिशत आरक्षण की ऊपरी सीमा का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि महाराष्ट्र सरकार ने ‘‘यह पता लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है कि क्या एसबीसी श्रेणी में शामिल जातियां पिछड़ी हैं, उनके पिछड़ेपन को दिखाने या साबित करने के लिए कोई डेटा भी नहीं है।”  याचिकाकर्ता ने आठ दिसंबर 1994 की अधिसूचना निरस्त करने का अनुरोध किया है।