नागपुर

Published: Dec 01, 2020 02:21 AM IST

नागपुरमैदानों में कब्जा, तो कहां खेलेगे बच्चे

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
File Photo

नागपुर. शहर में खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए मैदानों के विकास और सुविधाएं मुहैया कराने की घोषणा पर घोषणा होती रही है, मगर उसे अमल में नहीं लाया जा रहा है. जनप्रतिनिधि अपने भाषण में शहर में खेल विकास के सपने दिखाते रहे हैं. मगर अब तक कुछ ठोस पहल की गई हो, ऐसा नजर नहीं आ रहा. शहर की अमूमन बस्तियों में एक नहीं, 2-4 छोटे-छोटे मैदान हैं, मगर कहीं उसका उपयोग कूड़ादान के रूप में हो रहा है तो कहीं झाड़ियां उग आई हैं. कहीं गड्ढे तो कहीं पत्थरों के ढेर पड़े हैं. जिसके कारण खेल के लिए इन मैदानों का उपयोग नहीं हो पा रहा है. कुछ बड़े मैदानों के चारों ओर कचरा-मलबा आदि डालने के कारण मैदान सिकुड़ गए हैं और ऐसे मैदानों में खेलने के लिए जगह छोटी होती जा रही है.

मनपा प्रशासन खेल के मैदानों के विकास के लिए खेल संगठनों को लीज पर देने की योजना की भी कुछ वर्ष पूर्व घोषणा कर चुका है, मगर उस पर भी अब तक अमल नहीं किया गया. शहर के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की खेल विकास के प्रति घोर उदासीनता के चलते शहर के खेल मैदानों का विकास भी नहीं हो पा रहा है. खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए जब खेलने के लिए मैदान ही नहीं होंगे तो अन्य सुविधाओं की बातें तो दूर की कौड़ी हैं. 

इच्छाशक्ति का अभाव

बस्तियों के मध्य में जो मैदान हैं उनमें से अधिकतर मैदान के किनारे-किनारे पानठेले, चाय, कबाड़ी, सलून, कपड़े प्रेस करने वाले, पंक्चर बनाने वालों ने कब्जा कर रखा है. खेल विकास की बात करने वाले नगर प्रशासन के जोनल अधिकारियों को लेकिन इससे कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा. अनेक स्कूलों के मैदान तक अतिक्रमण, गंदगी, कूड़ादान की चपेट में हैं. बच्चों को खेलने के लिए जगह नसीब नहीं है. अनेक कालोनियों में क्रिकेट, फुटबाल आदि खेलने वाले युवा ही स्वयं मैदानों की सफाई कर उसका उपयोग खेलने के लिए कर रहे हैं. मनपा के कर्णधार नेता हमेशा मैदानों के विकास की घोषणा तो करते रहते हैं मगर उनकी इच्छाशक्ति खेल विकास की आधारभूत जरूरत भी मुहैया कराने की नजर नहीं आती.

मेन्टेनेन्स करने वाला कोई नहीं

शहर के अनेक बस्तियों में जहां खिलाड़ी और युवा मैदानों की स्वयं ही देखरेख, सफाई आदि स्वयमेव होकर कर लिया करते थे, वे भी अब मनपा और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण उदास हो चुके हैं. कई मैदानों में आधी-अधूरी बाउंड्रीवाल बनाकर छोड़ दी गई है तो कहीं फुटबाल, बास्केटबाल आदि के लिए लगाए गए पोल ही उखड़ चुके हैं. कहीं मैदान की रेलिंग लोहाचोरों ने काटकर बेच खाया है तो किसी मैदान में आयोजनों में लगने वाले पंडालों के कारण गड्ढे हो गए हैं. शहर के युवाओं और खिलाड़ियों को बस यही इंतजार है कि आखिर यहां के मैदान खेलने लायक कब बनाए जाएंगे.