नागपुर
Published: Oct 06, 2021 03:12 AM ISTCentral Jailकानून एक तो अलग-अलग न्याय क्यों, सेंट्रल जेल के अधीक्षक को स्पष्टीकरण देने का अंतिम मौका
नागपुर. कई बार देरी से समर्पण करने के बावजूद पहले भी 45 दिनों की इमरजेंसी पैरोल दी गई थी किंतु अब इसी तरह की पैरोल का आवेदन ठुकराए जाने पर इसे चुनौती देते हुए कैदी हनुमान पेंदाम ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए गए आदेशों के अनुसार शपथपत्र तो दायर किया गया किंतु एक कानून होने के बावजूद कैदियों से अलग-अलग न्याय करने पर आपत्ति जताते हुए न्यायाधीश वी.एम. देशपांडे और न्यायाधीश अमित बोरकर ने सेंट्रल जेल के अधीक्षक को स्पष्टीकरण देने का अंतिम मौका प्रदान किया. अदालत मित्र के रूप में अधि. फिरदौस मिर्जा, अधि. श्वेता वानखेड़े तथा सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील एसएम घोडेस्वार ने पैरवी की.
किसी कैदी को दी राहत तो किसी को ठुकराया
मंगलवार को सुनवाई के बाद अदालत ने आदेश में कहा कि जेल अधीक्षक की ओर से 1 अक्टूबर को हलफनामा दायर किया गया जिसमें कैदियों की सूची प्रेषित की गई. हलफनामा में जेल नियम-1959 की धारा 19(1)(सी) जिन्हें इमरजेंसी कोरोना पैरोल पर छोड़ा गया, ऐसे कैदियों की सूची दी गई. जबकि उन्हें पहले 2 बार नहीं छोड़ा गया था. इसी तरह से जेल अधीक्षक की ओर से 20 सितंबर को भी हलफनामा दायर किया गया था जिसमें इसी नियम के अनुसार जिन कैदियों के छुट्टी के आवेदन ठुकराए गए, उनकी सूची दी गई. अदालत ने आदेश में कहा कि इन दोनों हलफनामों को देखा जाए तो प्रतीत होता है कि जेल अधीक्षक ने कुछ कैदियों को छुट्टी प्रदान की, जबकि इसी समय अन्य कैदियों को छुट्टी देने से इनकार कर दिया.
अधिकारों का विपरीत उपयोग क्यों
अदालत ने दोनों हलफनामा का हवाला देते हुए आदेश में कहा कि इस तरह से अधिकारों का विपरीत उपयोग क्यों किया गया. इसे जेल अधीक्षक द्वारा समझाया जाना चाहिए. इसके लिए एक बार अंतिम मौका देने का उल्लेख करते हुए अदालत ने 7 अक्टूबर की दोपहर 2.30 बजे याचिका सुनवाई के लिए रखने के भी आदेश जारी किए. अदालत ने इसका खुलासा विस्तृत रूप से देने को कहा है.
गत सुनवाई के दौरान जेल अधीक्षक द्वारा लिए गए फैसले को उचित करार देने का सरकारी पक्ष की ओर से प्रयास किया गया था लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने कहा कि अधि. फिरदौस मिर्जा को अदालत मित्र के रूप में नियुक्ति की. सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष की ओर से जिन्हें इमरजेन्सी पेरोल दिया गया और जिनके इमरजेंसी पैरोल ठुकराए गए, ऐसे सभी मामलों पर सरकार के रुख को उचित दिखाने की कई दलीलें दी गईं किंतु अदालत ने सरकारी दलीलों से असंतुष्टि जताई.